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पंचसंग्रह : १० (पूर्वोक्त दो उदयस्थानों में) प्रत्येक, उपघात, औदारिकद्विक, छह संस्थानों में से एक संस्थान और प्रथम संहनन का प्रक्षेप करने पर छब्बीस और सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होते हैं और शेष उदय पूर्व में कहे अनुसार जानना चाहिये।
विशेषार्थ-यद्यपि मनुष्यों में पाये जाने वाले उदयस्थान केवली भगवन्तों में भी होते हैं। फिर भी इनमें मनुष्यसामान्य की अपेक्षा विशेषता है । अतः इनके उदयस्थानों का पृथक् से निर्देश किया है। जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार हैं
केवली भगवान में आठ, नौ, बीस, इक्कीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक ये दस उदयस्थान होते हैं। उनमें से आठ और नौ प्रकृतिक उदयस्थानगत प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं
त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, पंचेन्द्रियजाति और मनुष्यगति, इन आठ प्रकृतियों का उदय अयोगिकेवली गुणस्थान में सामन्य केवली के होता है । इस आठ प्रकृतिक उदयस्थान का एक ही भंग होता है तथा तीर्थंकर भगवन्तों के तीर्थंकर नाम का भी उदय होता है । अतएव पूर्वोक्त आठ प्रकृतियों में उसको मिलाने पर नौ का उदयस्थान होता है । इसका भी एक ही भंग है।
इस प्रकार आठ और नौ प्रकृतिक उदयस्थान अयोगिकेवली गुणस्थान के अनुक्रम से सामान्य केवली और तीर्थंकर केवली को होते हैं। तथा
पूर्वोक्त आठ और नौ प्रकृतिक उदयस्थान में ध्र वोदया, तेजस, कार्मण, वर्णचतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अगुरुलघु और निर्माणनाम रूप बारह प्रकृतियों को मिलाने पर बीस और इक्कीस प्रकृतिक यह दो उदयस्थान इस प्रकार होते हैं--पूर्वोक्त आठ प्रकृतियों में ध्र वोदया बारह प्रकृतियों को मिलाने से बीस प्रकृतिक एवं नौ प्रकृतियों में मिलाने पर इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । जो
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