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________________ १६८ पंचसंग्रह : १० उदय नहीं होता है । अतएव विकलेन्द्रियों के उदयस्थानों में से इन दो प्रकृतियों को कम करना चाहिये तथा नारकों के उदयस्थानों का कथन करने के प्रसंग में नरकगति का अनुसरण करने वाली प्रकृतियों में फेर-बदल कर लेना चाहिये और ऐसा करने पर इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान की प्रकृतियों के नाम इस प्रकार होंगे नरकगतिद्विक, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, दुर्भग, अनादेय, अयशः कीर्ति, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, तैजस, कार्मण और निर्माण नाम । नरकगति सम्बन्धी उदयस्थानों में प्रायः सभी प्रकृतियां अशुभ होने से इस इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान का एवं आगे कहे जाने वाले उदयस्थानों का एक-एक ही भंग होता है । तत्पश्चात् शरीरस्थ के इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान में से नरकानुपूर्वी को कम करके वैक्रियद्विक, प्रत्येक, उपघात, हुण्डसंस्थान इन पाँच प्रकृतियों के उदय को मिलाने पर पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके बाद शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त के पराघात और अशुभ विहायोगति के उदय को मिलाने पर सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । तत्पश्चात् उच्छ्वासपर्याप्ति से पर्याप्त होने के बाद श्वासोच्छ्वास का उदय मिलाने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके बाद भाषापर्याप्ति से पर्याप्त को दुःस्वर का उदय मिलाने पर उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है तथा सब मिलाकर नारकों के पाँच उदयस्थानों के पाँच ही भंग होते हैं । इस प्रकार से नरकगति सम्बन्धी नामकर्म के उदयस्थान जानना चाहिए | अब मनुष्यों में विशिष्ट ज्ञान के धारक केवली भगवन्तों के उदयस्थानों का विचार करते हैं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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