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पंचसंग्रह : १० स्वरसहित उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में संयत को उद्योत का उदय मिलाने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इस तीस के उदयस्थान में संयत को समस्त प्रशस्त प्रकृतियों का ही उदय होने से एक ही भंग होता है और सब मिलाकर वैक्रिय मनुष्य के पांच उदयस्थान के पैंतीस भंग होते हैं। ___ आहारक संयत के पांच उदयस्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैंपच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक। इनमें से पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान में निम्नलिखित प्रकृतियों का समावेश
आहारकद्विक, समचतुरस्रसंस्थान, उपघात, प्रत्येक, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति, तैजस, कार्मण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ और निर्माण । यहाँ सभी प्रकृतियां प्रशस्त होने से एक ही भंग होता है। क्योंकि आहारक संयत को दुर्भग, अनादेय और अयश:कीति का उदय नहीं होता है।
शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त को पराघात और प्रशस्त विहायोगति का उदय बढ़ाने पर सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां भी एक ही भंग होता है।
प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त के उच्छ्वास का उदय मिलाने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां भी एक ही भंग होता है । अथवा शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त के उच्छ्वास का उदय होने से पहले किसी को उद्योत का उदय होता है। जिससे उसको मिलाने पर भी अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहां भी एक ही भंग होता है और सब मिलाकर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान के दो भंग होते हैं।
भाषापर्याप्ति से पर्याप्त को उच्छ्वास के उदययुक्त अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान में स्वर के उदय को मिलाने पर उनतीस प्रकृतिक
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