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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७७
१४५ प्रकृतिक ये चार उदयस्थान उत्तर वैक्रियशरीर करते मनुष्य, तिर्यचों के होते हैं और तीस प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ पर्याप्त तिर्यंचमनुष्यों के तथा उद्योत के वेदक उत्तर वैक्रियशरीरी तिर्यंच के होता है। इकत्तीस प्रकृतिक उदयस्थान उद्योत के वेदक स्वभावस्थ तिर्यच को होता है । देशविरत गुणस्थान संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज, पर्याप्त तिर्यंच तथा मनुष्यों के होता है, जिससे पर्याप्तावस्था में हो सकता है तथा वैक्रियशरीर करने पर जो उदयस्थान हो सकते हैं वे यहां होते हैं। __ प्रमत्तसंयत गुणस्थान में छब्बीस प्रकृतिक के सिवाय पच्चीस से तीस प्रकृतिक तक के पाँच उदयस्थान होते हैं-"छव्वीसूणा पमत्ति पुण पंच।" इनमें से पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतिक ये चार उदयस्थान उत्तर वैक्रियशरीर और आहारकशरीर करते संयत को होते हैं और स्वभावस्थ संयत को तीस प्रकृतियों का उदय होने से तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । किन्तु इकत्तीस प्रकृतिक उदयस्थान उद्योत के उदय वाले तिर्यंचों ही के होता है, जिससे वह संयत को होता नहीं है और प्रमत्तसंयतगुणस्थान मात्र संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज, पर्याप्त मनुष्य को ही होता है। जिससे पर्याप्तावस्था सम्बन्धी एवं वैक्रिय व आहारक शरीर करने पर जो उदयस्थान हो सकते हैं, वही होते हैं और वे हैं, छब्बीस प्रकृतिक रहित पच्चीस से लेकर तीस प्रकृतिक तक के पाँच । इसीलिये छठे गुणस्थान में पाँच उदयस्थान संभव हैं। तथा_ 'गुणतीसाई मीसे' अर्थात् तीसरे सम्यमिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) गुणस्थान में उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक उदय रूप तीन उदयस्थान होते हैं । यह गुणस्थान चारों गति के जीवों के पर्याप्तावस्था में ही होता है। जिससे पर्याप्तावस्था में संभव उदयस्थान ही यहाँ होते हैं । इन उदयस्थानों में से उनतीस प्रकृतिक उदय नारकों के, तीस प्रकृतिक उदय देव, मनुष्य और तिर्यंचों को तथा इकत्तीस प्रकृतिक उदय तिर्यचों के होता है। तथा-----
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