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________________ ( ३ ) आप सदैव ही कहते रहते हैं कि आज जो कुछ भी हम हैं, वह सब पूज्य गुरुदेव श्री का ही प्रताप है । पूज्य गुरुदेव श्री के सान्निध्य में आपने सर्वप्रथम पाली स्थानक में सत्तावन हजार (५७ हजार) रुपये भेंट किये । मेडतासिटी में आचार्य रघुनाथ चतुर्दश चातुर्मास स्मृति भवन में हाल बनाने हेतु एक लाख, ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपये ( १ लाख ११ हजार १ सौ ११ रु० ) भेंट कर भवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया । बिलाड़ा चिकित्सालय को पच्चीस हजार रुपये ( २५ हजार रुपयों) का योगदान दिया । जोधपुर के विशाल महावीर भवन का उद्घाटन आपके ही कर-कमलों से हुआ है । इस भवन निर्माण में एक लाख एक हजार रुपयों ( १ लाख १ हजार रु० ) का महत्वपूर्ण योगदान दिया है । मद्रास जैन कॉलेज में इक्कीस हजार ( २१ हजार ) व वर्धमान महावीर केन्द्र आबू पर्वत पर ग्यारह हजार रुपये ( ११ हजार ) रुपयों का योगदान दिया है । इनके अतिरिक्त छोटी-मोटी राशियाँ तो सदैव ही स्थान-स्थान पर अर्पित करते रहते हैं । आपके यहाँ से सहायता की आशा लेकर आने वाला कभी निराश नहीं जाता । 'पुण्यवान के पग-पग नव निधान' कहावत के अनुसार आपको सुयोग्य, होनहार एवं आज्ञाकारी पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई । श्री शांतिलालजी ज्येष्ठ पुत्र हैं और बंगलौर में व्यवसाय कर रहे हैं । श्री गौतमचन्दजी आपके द्वितीय प्रतिभाशाली सुपुत्र हैं । आपका मद्रास में भारी कारोबार व वर्चस्व है । अभी जयतारण में मरुधर केसरी जी के प्रथम स्मृति दिवस पर आपने अपने साथियों के साथ दो लाख से भी ऊपर की बौलियां छुड़ाकर समाधि स्थल पर कलश चढ़ाया है । आप धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत, गुरुदेव श्री के अगाध श्रद्धालु भक्त, सेवाभावी होनहार नवयुवक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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