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पंचसंग्रह : १०
अब पूर्वोक्त मोहनीयकर्म के सत्तास्थानों के अवस्थान काल का कथन करते हैं। मोहनीयकर्म के सत्तास्थानों का अवस्थान काल
सत्तावीसे पल्लासंखेसो पोग्गलद्ध छन्वीसे । बे छावट्ठी अडचउवीसिगिवीसे उ तेत्तीसा ॥४॥ अंतमुहुत्ता उठिई तमेव दुहओ वि सेससंताणं । होइ अणाइ अणंतं अणाइ संतं च छन्वोसा ॥४६॥ शब्दार्थ-सत्तावीसे–सत्ताईस का, पल्लासंखंसो-पल्योपम का, असंख्यातवां भाग, पोग्गलद्ध-अर्धपुद्गल परावर्तन, छव्वीसे-छब्बीस का, बे छावट्ठी-दो छियासठ सागरोपम, अडचउवीस-अट्ठाईस और चौवीस का, इगिवीसे-इक्कीस का, उ-और, तेत्तीसा-तेतीस सागरोपम ।
अंतमुहत्ता-अन्तर्मुहूर्त, उ-और, ठिई-स्थिति, तमेव-वैसे ही, दुहओ-दोनों, वि-ही, सेससंताणं-शेष सत्तास्थानों का, होइ-होता है, अणाइ-अनादि, अणतं--अनन्त, अणाइसंतं-अनादि-सांत, च-और, छन्वीसा-छब्बीस का।
गाथार्थ-सत्ताईस के सत्तास्थान का पल्योपम का असंख्यातवां भाग काल है, छब्बीस का कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्तन,अट्ठाईस और चौबीस इन दो सत्तास्थानों का दो छियासठ सागरोपम, इक्कीस का कुछ अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट काल है। प्रत्येक का अन्तर्मुहूर्त जघन्य काल है तथा शेष सत्तास्थानों का दोनों (जघन्य उत्कृष्ट) काल अन्तमुहूर्त प्रमाण है। छब्बीस के सत्तास्थान का अनादि-अनन्त और अनादि-सांत भी काल है। विशेषार्थ-मोहनीयकर्म के सत्तास्थानों की संख्या पूर्व में कही जा चुकी है। उन सबका जघन्य और उत्कृष्ट अवस्थान काल इन दो गाथाओं द्वारा कहा है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
'सतावीसे पल्लासंखंसो' अर्थात् सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान का
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