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पंचसंग्रह : १०
यह अनन्तानुबंधि के उदय बिना का सात का उदयस्थान किस तरह और कितने काल होता है, यह यदि समझ में आ जाये तो सात के उदय में अट्ठाईस का एक ही सत्तास्थान हो सकता है, यह समझा जा सकेगा । इसलिये अब उसी को स्पष्ट करते हैं
किसी जीव ने सम्यग्दृष्टि होने पर अनन्तानुबंधि की उवलना की - सत्ता में से निर्मूल किया, तत्पश्चात् कालान्तर में तथाप्रकार के परिणामवश मिथ्यात्व में गया। जिस समय मिथ्यादृष्टि हुआ उसी समय से मिथ्यात्व रूप निमित्त के द्वारा अनन्तानुबंधि कषाय का बंध प्रारम्भ किया और बंधती हुई उस अनन्तानुबंधि कषाय में बंध के साथ ही अप्रत्याख्यानावरणादि कषायों को संक्रमित करना भी आरम्भ किया तो इस प्रकार के मिथ्यादृष्टि को बंधावलिका या संक्रमावलिका रूप एक आवलिका पर्यन्त अनन्तानुबंधि कषाय का उदय नहीं होता है । अनन्तानुबंधि की विसंयोजना किये बिना जो मिथ्यात्व गुणस्थान में जाता है उसे तो अवश्य अनन्तानुबंधि कषाय का उदय होता है । इस प्रकार मिथ्यादृष्टि को एक आवलिका काल पर्यन्त सात के उदय में अट्ठाईस प्रकृति रूप एक ही सत्तास्थान सम्भव है ।
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इसके अतिरिक्त शेष रहे आठ, नौ और दस प्रकृति रूप तीन उदय स्थानों में छब्बीस, सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक इस तरह तीनतीन सत्तास्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैं
आठ प्रकृतिक उदयस्थान के दो प्रकार हैं - १. अनन्तानुबंधि उदय रहित और २. अनन्तानुबंधि उदय सहित । इनमें से अनन्तानुबंधि के उदय बिना के आठ के उदय में सात के उदय में कही गई युक्ति के अनुसार अट्ठाईस का एक ही सत्तास्थान होता है और अनन्तानुबंधि के उदय वाले आठ के उदय में पूर्वोक्त तीन (छब्बीस, सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक) सत्तास्थान होते हैं । उनमें से जब तक सम्यक्त्वमोहनीय की उवलना न हो तब तक अट्ठाईस, सम्यक्त्व मोहनीय की उवलना के बाद सत्ताईस और मिश्रमोहनीय की उवलना के बाद छब्बीस अथवा अनादि मिथ्यादृष्टि के छब्बीस प्रकृतिक सत्ता
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