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पंचसंग्रह : ६
मोहनीय रूप करने की क्रिया अनिवृत्तिकरण के चरम समय से प्रारम्भ होती है, परन्तु गुणसंक्रम चतुर्थ गुणस्थान के प्रथम समय से प्रारम्भ होता है और वह गुणसंक्रम इस प्रकार होता है__जिस समय उपशमसम्यक्त्व प्राप्त होता है, उसी समय मिथ्यात्वमोहनीय के दलिक सम्यक्त्वमोहनीय में स्तोक-अल्प संक्रमित होते हैं
और उसी समय मिश्रमोहनीय में असंख्यातगुण दलिक संक्रमित होते हैं। दूसरे समय में प्रथम समय मिश्रमोहनीय में संक्रमित हुए दलिकों से असंख्यातगुण सम्यक्त्वमोहनीय में संक्रमित होते हैं, उनसे उसी समय मिश्रमोहनीय में असंख्यातगुण संक्रमित होते हैं । तीसरे समय में दूसरे समय मिश्रमोहनीय में संक्रमित हुए दलिकों से असंख्यातगुण सम्यक्त्वमोहनीय में संक्रमित होते हैं, उनसे उसी समय मिश्रमोहनीय में असंख्यातगुण संक्रमित होते हैं। इस क्रम से प्रति समय सम्यक्त्व
और मिश्रमोहनीय में मिथ्यात्वमोहनीय का गुणसक्रम अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त होता है। इसके पश्चात् विध्यातसंक्रम प्रवर्तित होता है। तथा
गुणसंकमेण एसो संकमो होइ सम्ममीसेसु । अंतरकरणमि ठिओ कुणइ जओ स पसत्थगुणो ॥२४॥
शब्दार्थ- गुणसंकमेण-गुण संक्रम द्वारा, एसो-यह, संकमो-संक्रम, होइ–होता है, सम्ममीसेसु-सम्यक्र व और मिश्र मोहनीय में, अंतरकरगंमि-अंतरकरण में, ठिओ-स्थित रहकर, कुणइ- करता है, जओ-क्योंकि, स-वह, पसत्थगुणो-प्रशस्त गुण युक्त ।
गाथार्थ-ऊपर कहे अनुसार संक्रम सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय में गुणसंक्रम द्वारा होता है और वह अंतरकरण में रहते हुए करता है। क्योंकि वहाँ वह (जीव) प्रशस्त गुण युक्त है ।
विशेषार्थ-मिथ्यात्वमोहनीय के पुद्गलों का मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय में संक्रम गुणसंक्रम द्वारा होता है। क्योंकि अंतरकरण में
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