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________________ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३ २१ अन्तर्मुहूर्त काल में घात करता है। एक स्थितिघातकाल में हजारों रसकंडकों का घात होता है। विशेषार्थ-गाथा में कर्मप्रकृतियों के अनुभाग-रस के घात होने की प्रक्रिया का निर्देश किया है । रसघात यानि बंध के समय जीव ने काषायिक अध्यवसायों द्वारा कर्म पुद्गलों में जो फलदानशक्ति उत्पन्न की थी, उस शक्ति को कम करना । ___ अशुभ प्रकृतियों का जो रस सत्ता में है, उसके अनन्तवें भाग को छोड़कर शेष समस्त रस को अन्तमुहूर्त काल में नाश करता है। उसके बाद पुनः पूर्व में शेष रहे अनन्तवें भाग के अनन्तवें भाग को छोड़कर शेष रस को अन्तर्मुहूर्त काल में नाश करता है। इस प्रकार से एक-एक स्थितिघात जितने काल में हजारों रसघात होते हैं। हजारों स्थितिघातों द्वारा अपूर्वकरण पूर्ण होता है। __उक्त कथन का सारांश यह है कि अपूर्वकरण के काल में हजारों बार स्थितिघात होता है और एक स्थितिघात जितने काल में हजारों बार रसघात हो जाता है । यानि विशुद्ध परिणाम के योग से आत्मा के गुणों की बंध के समय उत्पन्न आवारक शक्ति को विशुद्धि के प्रमाण में कम करता है। सत्तागत अशुभ प्रकृतियों के रस के अनन्तवें भाग को छोड़कर अनन्तवें भाग रूप एक खण्ड को अन्तर्मुहूर्त काल में घात करता है। जिससे कि उस खण्ड में के अमुक प्रमाण रस को पहले समय में, अमुक प्रमाण रस को दूसरे समय में, इस प्रकार क्षय करतेकरते चरम समय में उस रसखण्ड का पूर्णतया नाश होता है। उसके बाद पहले जो अनन्तवाँ भाग छोड़ा था उसका अनन्तवाँ भाग छोड़कर अनन्त भाग को उपर्युक्त रीति से अन्तर्मुहर्त काल में घात करता है। इस प्रकार रस का घात होने से उत्तरोत्तर अल्प-अल्प रस वाले दलिक बंध को प्राप्त होते हैं। ऐसा होने से अध्यवसायों की निर्मलता भी बढ़ती जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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