SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचसंग्रह : ६ विभंगज्ञान में से किसी भी साकारोपयोग-ज्ञानोपयोग में वर्तमान जीव सम्यक्त्व प्राप्त करने के योग्य है और वैसा जीव उसे प्राप्त करने के लिये तीन करण करता है । जिनके नाम आगे को गाथा में बतलाते हैं। करणत्रय के नाम पढमं अहापवत्त बीयं तु नियट्टी तइयमणियट्टी। अंतोमुहुत्तियाइं उवसमअद्ध च लहइ कमा ॥५॥ शब्दार्थ---पढम-प्रथम-पहला, अहापवत्त ----यथाप्रवृत्तकरण, बीयंद्वितीय-दूसरा, तु-और, निबट्टी-निवृत्ति-अपूर्वकरण, तइयमणियट्टी---- तृतीय-तीसरा अनिवृत्तिकरण, अन्तोमुहुत्तियाई-अंतर्मुहूर्तकाल वाले, उवसमअद्ध-उपशमकाल प्रमाण (अन्तमुहूर्तकालप्रमाण) च-और, लहइ–प्राप्त करता है, कमा-क्रम से। गाथार्थ-पहला यथाप्रवृत्त, दूसरा अपूर्वकरण और तीसरा अनिवृत्तिकरण है । ये प्रत्येक अन्तमुहूर्त काल वाले हैं । तत्पश्चात् उपशमकालप्रमाण वाले (अन्तमुहर्त काल प्रमाण वाले) उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। विशेषार्थ-उपशमसम्यक्त्व प्राप्त करने से पूर्व जीव तीन करण करता है। जिनके नाम इस प्रकार हैं-यथाप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण और अनिवत्तिकरण । इन तीनों करणों में से प्रत्येक का काल अन्तमुहर्त प्रमाण का है । इस प्रकार अनुक्रम से तीनों करणों को करने के पश्चात् जीव उपशमसम्यक्त्व प्राप्त करता है और उस प्राप्त उपशमसम्यक्त्व का काल भी अन्तमुहर्त प्रमाण है। अब ग्रन्थकार आचार्य तीनों करणों का लक्षण-स्वरूप बतलाते हैं । तीन करणों का स्वरूप आइल्लेसु दोसु जहन्न उक्कोसिया भवे सोही । जं पइसमयं अज्झवसाया लोगा असंखेज्जा ॥६॥ शब्दार्थ-आइल्लेसु-आदि के, दोसु-दो करणों में, जहन्नउक्कोसिया -जघन्य और उत्कृष्ट, भवे-होती है, सोही-विशुद्धि, जं-क्योंकि, पइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy