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गाथा ४७
क्षायिक सम्यक्त्व का मुक्तिगमन चारित्रमोहनीय को उपशमना का स्वामित्व
गाथा ४८, ४६
दर्शनत्रिक की उपशमना विधि
गाथा ५०,५१, ५२, ५३, ५४,५५,५६,५७,५८,५६,६०
चारित्रमोहनीय की उपशमना विधि
गाथा ६१
( २२ )
संज्वलनकषायचतुष्क और वेदत्रिक का स्वोदयकाल
गाथा ६२, ६३,६४
अन्तरकरण के साथ और अनन्तर संभव कार्य
गाथा ६५, ६६,६७
अन्तरकरण में प्रविष्ट जीवों के नवीन स्थितिबंध का
स्पष्टीकरण
गाथा ६६,७०
गाथा ६८
हास्यषट्क के उपशांत होने के अनन्तर पुरुषवेद के अनुपशांत दलिक का प्रमाण
पूर्वोक्त का स्पष्टीकरण
गाथा ७१,३२
अप्रत्याख्यानावरणादि कषायों की उपशमना
गाथा ७३
उपशमणि में संज्वलन क्रोधादि का उदय के चरम समय में जघन्य स्थितिबंध प्रमाण
गाथा ७४
संज्वलनलोभ की वक्तव्यता
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८८
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दह
६१-६६
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६७
हद - १००
हह
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