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तदनन्तर प्रायः देशोपशमना जैसे निद्धत्ति और निकाचना इन दो करणों की मुख्य-मुख्य विशेषताओं का वर्णन करके बंधनकरण से प्रारंभ हुए कर्म - प्रकृति विभाग के आठ करणों की प्ररूपणा समाप्त की है ।
उपशमनादि करणत्रय का समस्त विवेचन एक सौ चार गाथाओं में पूर्ण हुआ है ।
यह वर्ण्य विषय की संक्षिप्त रूपरेखा है । विशेष जानकारी के लिये अधिकार का सांगोपांग अध्ययन करना आवश्यक है ।
- देवकुमार जैन
खजांची मौहल्ला बीकानेर ३३४००१
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