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परिशिष्ट : &
भिन्न कषाय एवं वेद के उदय से श्रेणिआरोहण क्रम
संज्वलन क्रोधोदय द्वारा
संज्वलन क्रोध का वेदन करते हुए क्रोधत्रिक को, तदनन्तर मानत्रिक को ( क्रोधवत् ), तदनन्तर मायात्रिक को, तदनन्तर लोभत्रिक को उपशमित करता है ।
संज्वलन मानोदय द्वारा
संज्वलन मान का वेदन करते हुए क्रोधत्रिक को (नपुंसक वेदवत् ), तदनन्तर मानत्रिक को, तदनन्तर मायात्रिक को, तदनन्तर लोभत्रिक को उपशमित करता है ।
संज्वलन मायोदय द्वारा
संज्वलन माया का वेदन करते हुए पहले क्रोधत्रिक को, तदनन्तर मानत्रिक को, तदनन्तर मायात्रिक को, तदनन्तर लोभत्रिक को उपशमित करता है । संज्वलन लोभोदय द्वारा
संज्वलन लोभ का वेदन करते पहले क्रोधत्रिक को, तदनन्तर मानत्रिक को, तदनन्तर मायात्रिक को और तदनन्तर लोभत्रिक को उपशमित करता है । पुरुषवेदोदय से श्रेणि- आरंभक की अपेक्षा -
सर्वप्रथम नपुंसक वेद को उपशमित करता है, उसके बाद अन्तर्मुहूर्त के अनन्तर स्त्रीवेद को, तत्पश्चात एक समय के अनन्तर पुरुषवेद, हास्यषट्क की उपशमना का प्रारम्भ । उसके बाद हास्यंषट्क का उपशम होता है और - पुरुषवेद की एक स्थिति शेष रहती है । तत्पश्चात पुरुषवेदोदय की उपशान्ति; तत्पश्चात उदयावलिका और समयोन आवलिकाद्विकबद्ध को छोड़कर समस्त 'पुरुषवेद का उपशम होता है ।
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