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पंचसंग्रह (६) किट्टि सबसे अल्प रस वाली है, वह भी तीसरे समय की गई सबसे अधिक रस वाली किट्रि की अपेक्षा भी अनन् गुण रस वाली है। इस प्रकार पूर्वपूर्व के समय में की गई किट्रियों में की जो किट्टि सबसे अल्प रस वाली है, वह भी आगे-आगे के समय में की गई सबसे अधिक रसवाली किट्रि की अपेक्षा अनन्तगुण रस वाली होती है ।
प्रथम समय में की गई किट्टियों में की जो किट्टि सबसे अल्प रस और बहुत प्रदेश वाली है उसके दलिक की अपेक्षा भी दूसरे समय की गई किट्रियों में जो सबसे अधिक रस और अल्प प्रदेश वाली है, वह भी असंख्यातगुण दलिक वाली है। उसकी अपेक्षा तीसरे समय की गई किट्टियों में जो किट्टि सबसे अधिक रस और अल्प दलिक वाली है, वह भी असंख्यातगुण दलिक वाली है, उसकी अपेक्षा चौथे समय की गई किट्टियों में जो किट्रि सबसे अधिक रस और अल्प प्रदेश वाली है, वह भी असंख्यातगुण प्रदेश वाली है । इस प्रकार चरम समय तक समझना चाहिए।
किट्रिकरणाद्धा के बहत से संख्यात भाग जायें तब संज्वलन लोभ का स्थिति-बंध अन्तर्मुहुर्त प्रमाण, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्त राय कर्म का दिवसपृथक्त्व और शेष तीन कर्म का प्रभूत हजारों वर्ष प्रमाण होता है और वह भी हीन-हीन होते किट्टिकरणाद्धा के चरम समय में यानि नौवें गुणस्थान के चरम समय में अभी बताये गये अन्तमहर्त की अपेक्षा संज्वलन लोभ का बहुत ही छोटे अन्तर्महुर्त प्रमाण, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय का एक अहोरात्र प्रमाण और शेष तीन कर्म का कुछ न्यून दो वर्ष प्रमाण स्थितिबंध होता है और उसके बाद के समय में जीव दसवें गुणस्थान में प्रवेश करता है।
जिस समय दसवें गूणस्थान में प्रवेश करता है उस समय लोभ वेदनाद्धारूप संज्वलन लोभ की दो तृतीयांश भाग प्रमाण की गई प्रथमस्थिति की एक आवलिका और चरम दो समयन्यन दो आवलिका प्रमाणकाल में बंधे एवं किट्टिकरणाद्धा में की गई किट्रियों के सिवाय शेष संज्वलन लोभ का सर्व दलिक उपशांत होता है और किट्रिकरणाद्धा में द्वितीय स्थिति में जो किट्टियां की हैं उनमें से दसवें गुणस्थान के प्रथम समय में कितनी ही किट्टियों को आकर्षित कर अन्तरकरण रूप खाली स्थान के काल प्रमाण काल में स्थापित कर प्रथम स्थिति बनाता है और भोगता है एवं उसी समय
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