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________________ पंचसंग्रह ( 2 ) २ मोहनीय कर्म का नवीन स्थितिबंध संख्यात वर्ष प्रमाण और उदय तथा उदीरणा भी संख्यात वर्ष प्रमाण होती है । १७८ ३ अभी तक जो बध्यमान प्रकृतियों की बंधावलिका व्यतीत होने के बाद उदीरणा होती थी परन्तु अब बध्यमान प्रत्येक प्रकृतियों की बंध समय से छह आवलिका व्यतीत होने के बाद उदीरणा होती है । ४ अभी तक तो मोहनीय कर्म की बध्यमान पुरुषवेद और संज्वलन कषाय चतुष्क इन पाँच प्रकृतियों का परस्पर एक दूसरे में संक्रम होता था किन्तु अब पुरुषवेद का संज्वलन क्रोधादि चार में, संज्वलन क्रोध का संज्वलन मान आदि तीन में सक्रम होता है, परन्तु पुरुषवेद में नहीं होता है । संज्वलन मान का संज्वलन माया और लोभ में संक्रम होता है, परन्तु पुरुषवेद और संज्वलन क्रोध में नहीं होता है । संज्वलन माया का संक्रम संज्वलन लोभ में होता है परन्तु पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध व मान में नहीं होता है और संज्वलन लोभ का किसी में भी संक्रम नहीं होता है अर्थात् संज्वलन लोभ के संक्रम का अभाव है । ५ अब जो मोहनीय कर्म का नया स्थितिबन्ध होता है, वह पूर्व - पूर्व के स्थितिबंध की अपेक्षा संख्यातगुण हीन-हीन अर्थात् सख्यातभाग प्रमाण होता है । ६ शेष कर्मों का नया स्थितिबंध पूर्व-पूर्व के स्थितिबंध की अपेक्षा असंख्यातगुण हीन-हीन अर्थात् असंख्यातभाग प्रमाण होता है । ७ द्वितीय स्थितिगत नपुंसकवेद के दलिकों को उपशमित करने की शुरुआत करता है । उसमें पूर्व - पूर्व समय से उत्तरोत्तर समय में असंख्यातगुण उपशमित करता है और जिस समय जितना जितना दलिक उपशमित करता है, उसकी अपेक्षा असंख्यातगुण पर प्रकृति में संक्रमित करता है । इस तरह नपुंसक वेद को उपशमित करना द्विचरम समय तक समझना चाहिए, परन्तु चरम समय में तो जो अन्य प्रकृति में संक्रमित होता है, उस की अपेक्षा असंख्यातगुण उपशमित करता है । यहाँ वेद्यमान समस्त कर्मों की ऊपर की स्थितियों में से को उतारकर गुणश्रेणि में क्रमबद्ध स्थापित किये होने से और ऊपर की स्थितियों में दलिक अल्प होने से उदीरणा द्वारा अल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रभूत दलिकों गुणश्रेणि की दलिक उदय www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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