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________________ परिशिष्ट : ५ दर्शनत्रिक की उपशमना विधि वैमानिक देव की आयु बांधने के बाद यदि क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करे तो उपशम श्रेणी कर सकता है और जिसने वैमानिक देव की आयु का बंध कर लिया है अथवा किसी भी गतिप्रायोग आयु को बांधे बिना क्षयोपशम सम्यक्त्वी उपशम श्रेणि कर सकता है परन्तु अन्य जीव नहीं कर सकते हैं और यदि क्षयोपशम सम्यक्त्वी उपशम श्रेणि करे तो चारित्रमोहनीय का उपशम करने से पूर्व चौथे से सातवें तक चार में से किसी भी गणस्थान में वर्तमान जीव पहले अनन्तानुबंधि की विसंयोजना अथवा मतान्तर से उपशमना करके भी छठे अथवा सातवें गुणस्थान में दर्शनत्रिक की उपशमना करते हैं ।। ___दर्शनत्रिक की उपशमना करने पर भी यथाप्रवृत्त आदि तीन करण करते हैं। अपूर्वकरण के प्रथम समय से मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय का सम्यक्त्वमोहनीय में गुणसंक्रम भी प्रवर्तित होता है और अनिवृत्तिकरण के संख्यात भाग जाये और एक भाग शेष रहे तब तीनों दर्शनमोहनीय का अन्तरकरण करते हैं परन्तु अनुदित मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय की प्रथम स्थिति आवलिका प्रमाण और उदयप्राप्त सम्यक्त्वमोहनीय की प्रथम स्थिति शेष रहे अनिवृत्तिकरण के संख्यात भाग जितने अन्तर्मुहूर्त प्रमाण करते हैं। मिथ्यात्व तथा मिश्र मोहनीय की आवलिका प्रमाण प्रथम स्थिति स्तिबुक संक्रम से सम्यक्त्वमोहनीय में संक्रमित कर और सम्यक्त्वमोहनीय की प्रथम स्थिति रसोदय से अनुभव कर सत्ता में से नष्ट करते हैं। तीनों प्रकृतियों के अन्तरकरण में रहे हए दलिकों को वहां से दूर कर सम्यक्त्व की प्रथम स्थिति में प्रक्षिप्त कर भोग कर क्षय करते हैं एवं तीनों के द्वितीय (अन्तरकरण की ऊपर की) स्थिति में वर्तमान दलिकों को असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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