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________________ परिशिष्ट : ३ सम्यक्त्वोत्पाद प्ररूपणा का सारांश करणकृत उपशमना की प्रथम भूमिका सम्यक्त्व प्राप्त करना है। अतएव संक्षेप में उसकी प्राप्ति की प्रक्रिया का निरूपण करते हैं। चारों गति में वर्तमान सर्वपर्याप्तियों से पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव उपशम, उपदेश-श्रवण और उपशमन क्रिया के योग्य उत्कृष्ट योग-इन तीन लब्धि युक्त जीव यथाप्रवृत्त आदि तीन करण करके उपशम सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु करण काल के पूर्व भी अन्तर्महर्त काल पर्यन्त यह योग्यतायें होती हैं १ ग्रन्थिदेश के निकट आये अभव्य को विशुद्धि की अपेक्षा भी उत्तरोत्तर प्रतिसमय अनन्तगुण प्रवर्धमान विशुद्धि होती है। २ आयु सिवाय शेष सात कर्मों की अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण स्थिति सत्ता और अशुभ प्रकृतियों के सत्तागत चतुःस्थानगत रस को द्विस्थानक एवं शुभ प्रकृतियों के सत्तागत द्विस्थानक रस को चतुःस्थानक करता है। ३ मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान में से किसी भी एक साकारोपयोग में और जघन्य परिणाम से तेजोलेश्या, मध्यम परिणाम से पद्म लेश्या एवं उत्कृष्ट परिणाम से शुक्ल लेण्या में वर्तमान होता है। ४ स्वभूमिकानुसार जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट योग में बध्यमान प्रकृतियों का स्वभूमिकानुसार क्रमशः जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट प्रदेश बंध करता है। ५ यदि सम्यक्त्व प्राप्त करने वाले मनुष्य अथवा तिर्यंच हों तो सैंतालीस ध्र वबंधिनी प्रकृति एवं सातावदेनीय, हास्य, रति, पुरुषवेद, उच्चगोत्र ये पांच तथा देवद्विक, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियद्विक, प्रथम संस्थान, शुभविहायोगति, उच्छ्वास, पराघात और सदशक ये नामकर्म की उन्नीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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