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पंचसंग्रह : ६
अहवा दंसणमोहं पढमं उवसामइत्तु सामण्णे । ठिच्चा अणुदइयाणं पढमठिई आवली नियमा ॥ ४८ ॥ |
पढमुवसमंव सेसं अन्तमुहुत्ताउ तस्स संकेस विसोहिओ
पमत्तइयरत्तणं
विज्झाओ । बहुसो ॥४६॥ भेओ ।
पुणरवि तिन्नि करणाई करेइ तइयंमि एत्थ पुण अन्तोकोडाकोडी
बंध संत च
सत्तण्हं ॥५०॥
ठिइखंड उक्कोसंपि तस्स पल्लस्स संखतमभागं । ठितिखंड बहु सहस्से एक्केक्कं जं भणिस्सामो ॥ ५१ ॥ करणस्स संखभागे सेसे य असण्णिमाइयाण समो । बंधो कमेण पल्लं वीसग तीसाण उ दिवढं ||५२ || मोहस्स दोणि पल्ला संतेवि हु एवमेव अप्पनहू । पलियमित्तमि बधे अण्णो संखेज्जगुणहीणो ॥ ५३|| एवं तीसाण पुणो पल्लं मोहस्स होइ उ दिवं । मोहे एवं पल्लं सेसाण पल्ससंखसो ||५४ || वीसगतीसगमोहाण संतयं जहकमेण संखगुणं । असंखेज्जसो नामगोयाण तो बंधो ॥ ५५ ॥
पल्ल
एवं तीसापि हु एक्कपहारेण
मोहणीयस्स ।
तीसगअसंखभागो ठितिबंधो संतय च भवे ॥ ५६ ॥
वीसग असंखभागे मोहं पच्छा उ घाइ वीसग तओ घाई असंखभागम्मि असं समयबद्धाणुदीरणा होइ तंमि कालम्मि | देसघाइरसं तो मणपज्जव अन्तरायाण || ५८ || लाहोहीणं पच्छा भोगअचक्खुसूयाण तो चक्खु । परिभोगमइणं तो विरियस्स असेढिगा घाई ||५||
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तइयस्स ।
बज्झति ॥५७ ||
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