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________________ १४६ पंचसंग्रह : ६ अहवा दंसणमोहं पढमं उवसामइत्तु सामण्णे । ठिच्चा अणुदइयाणं पढमठिई आवली नियमा ॥ ४८ ॥ | पढमुवसमंव सेसं अन्तमुहुत्ताउ तस्स संकेस विसोहिओ पमत्तइयरत्तणं विज्झाओ । बहुसो ॥४६॥ भेओ । पुणरवि तिन्नि करणाई करेइ तइयंमि एत्थ पुण अन्तोकोडाकोडी बंध संत च सत्तण्हं ॥५०॥ ठिइखंड उक्कोसंपि तस्स पल्लस्स संखतमभागं । ठितिखंड बहु सहस्से एक्केक्कं जं भणिस्सामो ॥ ५१ ॥ करणस्स संखभागे सेसे य असण्णिमाइयाण समो । बंधो कमेण पल्लं वीसग तीसाण उ दिवढं ||५२ || मोहस्स दोणि पल्ला संतेवि हु एवमेव अप्पनहू । पलियमित्तमि बधे अण्णो संखेज्जगुणहीणो ॥ ५३|| एवं तीसाण पुणो पल्लं मोहस्स होइ उ दिवं । मोहे एवं पल्लं सेसाण पल्ससंखसो ||५४ || वीसगतीसगमोहाण संतयं जहकमेण संखगुणं । असंखेज्जसो नामगोयाण तो बंधो ॥ ५५ ॥ पल्ल एवं तीसापि हु एक्कपहारेण मोहणीयस्स । तीसगअसंखभागो ठितिबंधो संतय च भवे ॥ ५६ ॥ वीसग असंखभागे मोहं पच्छा उ घाइ वीसग तओ घाई असंखभागम्मि असं समयबद्धाणुदीरणा होइ तंमि कालम्मि | देसघाइरसं तो मणपज्जव अन्तरायाण || ५८ || लाहोहीणं पच्छा भोगअचक्खुसूयाण तो चक्खु । परिभोगमइणं तो विरियस्स असेढिगा घाई ||५|| Jain Education International तइयस्स । बज्झति ॥५७ || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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