SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ पंचसंग्रह : ६ केवल एक आवलिका पर्यन्त उदीरणा प्रवर्तित होती है। उस उदीरणाकरण के चरम समय में संज्वलनमाया और लोभ का स्थितिबंध एक मास का और शेष कर्मों का संख्यात वर्ष का होता है तथा उसी समय संज्वलनमाया के बंध, उदय और उदीरणा का विच्छेद होता है। अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण माया सर्वथा शान्त और संज्वलनमाया की प्रथमस्थिति की एक आवलिका और समयोन दो आवलिका काल में बंधे हुए दलिक को छोड़कर शेष समस्त शान्त हो जाता है। अवशिष्ट प्रथमस्थिति की अन्तिम आवलिका को संज्वलनलोभ में स्तिबुकसंक्रम द्वारा संक्रमित कर वेदन करता है। समयोन आवलिकाद्विक काल में बंधे हुए दलिक को उतने ही काल में पुरुषवेद के क्रम से उपशान्त करता है और संज्वलन लोभ में संक्रमित करता है। उसके बाद के समय में यानि जिस समय माया का उदयविच्छेद हुआ, उसके अनन्तरवर्ती समय में संज्वलन लोभ की द्वितीयस्थिति में से दलिकों को लेकर प्रथमस्थिति करता है और अनुभव करता है। इसी प्रकार क्रोध का उदयविच्छेद होने के बाद मान का उदय, उसका उदयविच्छेद होने के बाद माया का उदय और उसका उदयविच्छेद होने के बाद लोभ का उदय होता है एवं प्रत्येक की प्रथमस्थिति की जो अन्तिम-अन्तिम आवलिका शेष रहती है, वह उत्तर-उत्तर में स्तिबुकसंक्रम द्वारा संक्रमित करके वेदन करता है। यद्यपि संज्वलन क्रोधादि का अपने-अपने उदय के चरम समय में जितना स्थितिबंध होता है, उसका ऊपर संकेत किया जा चुका है, लेकिन उपशम और क्षपक श्रेणि की अपेक्षा उसमें जो विशेषता है, उसको यहाँ स्पष्ट करते हैंचरिमुदयम्मि जहन्नो बंधो दुगुणो उ होइ उवसमगे। तयणंतरपगईए चउग्गुणोण्णेसु संखगुणो ॥७३॥ __ शब्दार्थ-चरिमुदयम्मि-उदय के चरम समय में, जहन्नो-जघन्य, बंधो-बंध, दुगुणो-दुगुना, उ-और, होइ–होता हैं, उवसमगे-उपशम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy