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________________ पंचसंग्रह : ६ नामगोयाण संखा बंधो वासा असंखिया तइए । ता सव्वाण वि संखा तत्तो संखेज्जगुणहाणी ॥ ६७ ॥ शब्दार्थ - अंतरकरणपविट्ठो - अंतरकरण में प्रविष्ट, संखासंखंस - संख्यातगुण और असंख्यातगुण हीन, मोहुइयराणं - मोहनीय और इतर कर्मों का, बंधावुत्तरबंधो—बंध के बाद का बंध, एवं - इसी प्रकार, इत्थीए — स्त्रीवेद को, सखंसे - संख्यातवें भाग ८६ उबसंते-उपशांत होने पर, घाईनं संख्यात वर्ष प्रमाण, परंग — उसके बाद बंधो - बंध, सत्त०हे --सात नोकवायों को संख्यातवें भाग, उवसंते-उपशांत होने पर । घाति कर्मों का, संखेज्जसमा - का, संबंसो - संख्यातवां भाग, इसी प्रकार, संखज्जतममि Jain Education International -- नामगोवाण- - नाम और गोत्र कर्म का, संखा संख्यात, बधो - बंध, वासा - वर्ष, असंखिया – असंख्यात, तहए— तीसरे वेदनीय कर्म का, तातत्पश्चात्, सव्वाणवि --- सभी कर्मों का, संखा — संख्यात, तत्तो - उसके बाद, संखेज्जगुणहाणी - संख्यात गुणहीन । गाथार्थ - अन्तरकरण में प्रविष्ट जीव मोहनीयकर्म और इतर कर्मों का बंध के बाद का बंध अनुक्रम से संख्यातगुणहीन और असंख्यातगुणहीन करता है । इसी तरह स्त्रीवेद को उपशमित करता है और स्त्रीवेद का संख्यातवां भाग उपशांत होने पर - घात कर्मों का संख्यातवर्ष प्रमाण स्थितिबंध होता है, उसके बाद उनका संख्यातवें भाग स्थितिबंध होता है । इसी प्रकार सात को उपशांत करता है, और उनका संख्यातवां भाग उपशांत होने पर - नाम और गोत्र कर्म का संख्यातवर्ष प्रमाण और तीसरे वेदनीय कर्म का असंख्यातवर्ष प्रमाण स्थितिबंध होता है, तत्पश्चात् सभी कर्मों का संख्यातवर्षप्रमाण बंध होता है, उसके बाद संख्यातगुणहीन बंध होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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