________________
८
.
पंचसंग्रह : ८
का क्षय करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में उत्पन्न हो। सर्वार्थसिद्ध विमान की तेतीस सागरोपम प्रमाण आयु पूर्ण करके पूर्व कोटि वर्ष की आयु से मनुष्य में उत्पन्न हो और मनुष्यभव में आठ वर्ष की उम्र होने के बाद चारित्र ग्रहण करे और उतने काल न्यून पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण संयम का पालन कर अंत में आहारक शरीर की विकुर्वणा करने वाला आहारकसप्तक के उदय के बाद कि जिस समय आहारक शरीर बिखर जायेगा और उदय का अंत होगा उस अंत समय में उसकी जघन्य स्थिति-उदी रणा करता है। ___ मनुष्यभव में देशोन पूर्वकोटि प्रमाण संयम के पालन के कारण उतने काल आहारक सप्तक की सत्तागत स्थिति का क्षय होता है और अन्त में अल्प स्थिति सत्ता में रहती है। इसीलिए पूर्वकोटि वर्ष के अन्त में आहारकशरीर करने वाले को जघन्य स्थिति की उदीरणा बतलाई है।
चार बार मोहनीय का सर्वोपशम कहने का कारण यह है कि उस स्थिति में आहारकसप्तक में संक्रमित होने वाली प्रकृतियों का स्थितिघात होता है। जिससे आहारक के संक्रमयोग्य स्थान में अल्प स्थिति का संक्रम होता है तथा उस-उस समय अत्यन्त विशुद्ध परिणाम के योग से उसकी बंधयोग्य भूमिका में अल्प स्थिति का बंध होता है । सर्वार्थसिद्धि में उतने काल प्रदेशोदय से स्थिति कम करता है और नवीन बांधता नहीं। इसी कारण चार बार मोहनीय का उपशम और उसके बाद क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न होने का संकेत किया है । तथा
खोणताणं खीणे मिच्छत्तकमेण चोदसण्हपि । सेसाण सजोगते भिण्णमहत्तट्ठिईगाणं ॥३६॥
शब्दार्थ- खीगंताणं खीणे-क्षीणमोहगुणस्थान में जिनका क्षय होता है,, मिच्छत्तकमेण ---मिथ्यात्व के क्रम से, चोद्दसण्हंपि --चौदह प्रकृतियों की भी सेसाग-शेष की, सजोगन्ते---सयोगिकेवलीगुणस्थान के अन्त में, भिण्णमुहुत्तट्टिईगाणं -अन्तर्मुहर्त की स्थिति वाली।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org