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पंचसंग्रह : ८ बीस कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति को बांधकर और उसके बाद शुभपरिणामविशेष से मनुष्यानुपूर्वी की पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बांधना प्रारंभ करे तो बध्यमान उस मनुष्यानुपूर्वी की स्थिति में बंधावलिकातीत हुई और उदयावलिका से ऊपर को कुल दो आवलिका न्यून बीस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण नरकानुपूर्वी की स्थिति को मनुष्यानुपूर्वी की उदयावलिका से ऊपर संक्रमित करता है । अर्थात् मनुष्यानुपूर्वी की कुल स्थिति एक आवलिका न्यून बोस कोडाकोडो सागरोपम प्रमाण होती है। मनुष्यानुपूर्वी का बंध होने पर जघन्य से भी अन्तमुहूर्त पर्यन्त बंध होता है। जिससे अन्तर्मुहुर्त प्रमाण स्थिति आवलिकान्यून बीस कोडाकोडी सागरोपम में से कम होती है। उसको बांधने के बाद काल करके अनन्तर समय में मनुष्य होकर मनुष्यानुपूर्वी का अनुभव करके अन्तर्मुहूर्तन्यून बीस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उसकी स्थिति उदीरणायोग्य होती है।
प्रश्न-जैसे मनुष्यगति की पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम स्थिति बंधती है, उसी प्रकार मनुष्यानुपूर्वी की भी उतनी ही बंधती है । दोनों में से एक की भी बीस कोडाकोडी सागरोपम स्थिति नहीं बंधती है। इसीलिये इन दोनों प्रकृतियों को संक्रमोत्कृष्टा कहा है। जब उन दोनों में संक्रमोत्कृष्टा समान हैं, तब जैसे मनुष्यगति की तीन आव. लिकान्यून उत्कृष्ट स्थिति उदीरणायोग्य कही है, वैसे ही मनुष्यानुपूर्वी की तीन आवलिकान्यून बीस कोडाकोडी सागरोपमप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कहना चाहिये।
उत्तर- इसका कारण यह है कि मनुष्यानुपूर्वी अनुदयसंक्रमोत्कृष्टा और मनुष्यगति उदयसंक्रमोत्कृष्टा1 प्रकृति है। उदयसक्रमोत्कृष्टा प्रकृ. १ उदय रहते संक्रम द्वारा जितनी उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता होती है वे
उदयसंक्रमोत्कृष्टा और उदय न हो तब संक्रम' द्वारा जिनकी उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता होती है, वे अनुदयसंक्रमोत्कृष्टा कहलाती हैं।
अनुदय संक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियां इस प्रकार हैं--मनुष्योनुपूर्वी, मिश्रमोहनीय, आहारकद्विक , देवद्विक, विकलत्रिक, सूक्ष्मत्रिक और तीर्थंकरनाम ।
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