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पंचसंग्रह : ८ और तेरहवें गुणस्थान को प्राप्त कर उस-उस कर्म की उदीरणा का नाश करेंगे, उनकी अपेक्षा अध्र व है।
उक्त कथन का सारांश यह है कि
१-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, नाम, गोत्र और अंतराय इन पांच कर्मों की उदीरणा अनादि, ध्र व और अध्र व इस तरह तीन प्रकार की है।
२–वेदनीय और मोहनीय इन दो कर्म प्रकृतियों की उदीरणा के सादि, अनादि, ध्रुव, अध्र व ये चारों विकल्प हैं।
३-आयुकर्म की उदीरणा सादि और अध्र व इस तरह दो प्रकार की है।
इस प्रकार से मूल कर्म विषयक साद्यादि प्ररूपणा का आशय जानना चाहिये । अब उत्तर प्रकृतियों सम्बन्धी साद्यादि प्ररूपणा का निरूपण करते हैं। उत्तर प्रकृतियों की उदीरणा सम्बन्धी साद्यादि प्ररूपणा अधुवोदयाण दुविहा मिच्छस्स चउव्विहा तिहण्णासु । मूलुत्तरपगईण भणामि उद्दीरगा एत्तो ॥३॥
शब्दार्थ- अधुवोदयाण-अध्र वोदया प्रकृतियों की, दुविहा-दो प्रकार की, मिच्छस्स-मिथ्यात्व की, चउव्विहा–चार प्रकार की, तिहण्णासु-अन्य में (ध्र वोदया प्रकृतियों में) तीन प्रकार की, मूलुतरपगई गं --मूल और उत्तर प्रकृतियों के, भणामिकहूंगा, उद्दोरगा-उदीरक, एत्तो--अब यहाँ से ।
गाथार्थ-अध्र वोदया प्रकृतियों की उदीरणा दो प्रकार की है। ध्र वोदया प्रकृतियों में मिथ्यात्व की चार प्रकार को और अन्य प्रकृतियों की उदीरणा तीन प्रकार की है। अब मूल और उत्तर प्रकृतियों के उदीरकों को कहंगा। विशेषार्थ- उदय होने पर उदीरणा होती है और उदय प्रकृतियों के दो प्रकार हैं-ध्र वोदया और अध्र वोदया। इन दोनों प्रकारों की उदीरणा के सादि आदि विकल्पों का विवरण इस प्रकार है
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