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________________ उदीरणाकरण प्ररूपणा अधिकार : गावा ४१ ६५ स्त्रीवेद का द्विस्थानक, त्रिस्थानक और चतु स्थानक इस तरह तीन प्रकार का रसबंध होता है परन्तु उसकी अनुभाग- उदीरणा जघन्य एकस्थानक और मंद द्विस्थानक रस की एवं उत्कृष्ट सर्वोत्कृष्ट द्विस्थानक रस की होती है । सम्यक्त्वमोहनीय का बंध नहीं होने से उसके विषय में तो कुछ कहना नहीं है, परन्तु उदीरणा होती है, इसलिये उसके सम्बन्ध में विशेष का निर्देश करते हैं कि सम्यक्त्वमोहनीय की उत्कृष्ट द्विस्थानक रस की और जघन्य एकस्थानक रस की उदीरणा होती है तथा उसका जो एकस्थानक या द्विस्थानक रस है, वह देशघाती है। मनपर्यायज्ञानावरण और नपुंसकवेद के लिये बंध में जो कहाँ है, उससे यहाँ विपरीत जानना चाहिये । यानि बंधाश्रयी नपुंसकवेद का जिस प्रकार का रस कहा है, उस प्रकार का रस मनपर्यायज्ञानावरण की उदीरणा में और बंधाश्रयी मनपर्यायज्ञानावरण का जैसा रस कहा है वैसा नपुंसकवेद की उदीरणा में समझना चाहिये । वह इस प्रकार - मनपर्यायज्ञानावरण का बंधापेक्षा एकस्थानक, द्विस्थानक, त्रिस्थानक और चतुःस्थानक इस तरह चार प्रकार का रस है और यहाँ उत्कृष्ट उदीरणापेक्षा चतुःस्थानक और अनुत्कृष्ट - मध्यम उदीरणापेक्षा चतुःस्थानक त्रिस्थानक और द्विस्थानक रस है । नपुंसकवेद का अनुभाग बन्ध की अपेक्षा चतुःस्थानक त्रिस्थानक और द्विस्थानक इस तरह तीन प्रकार का रस है और यहाँ उत्कृष्ट उदीरणापेक्षा चतुःस्थानक और अनुत्कृष्ट - मध्यम उदीरणापेक्षा चतुः स्थानक, त्रिस्थानक, द्विस्थानक और एकस्थानक रस है । प्रश्न - जब नपुंसकवेद का एकस्थानक रस बंध होता ही नहीं है तो उदीरणा कैसे होती है ? उत्तर - यद्यपि नपुंसकवेद का एकस्थानक रस बंधता नहीं है, परन्तु क्षय के समय रसघात करते सत्ता में उसका एकस्थानक रस संभव है । इसीलिये जघन्य से उसके एकस्थानक रस की उदीरणा कही है । तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001905
Book TitlePanchsangraha Part 08
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages230
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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