________________
पंचसंग्रह : ७
मोहनीय में और मिश्रमोहनीय सम्यक्त्वमोहनीय में संक्रमित होती है ।
४०
इस प्रकार से उपशम सम्यग्दृष्टि की उपशमश्र णि में संक्रम और पतद्ग्रह विधि जानना चाहिये । अब उपशमश्र णि में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि की संक्रम और पतद्ग्रह विधि का निरूपण करते हैं । उपशमश्र णि में वर्तमान क्षायिकसम्यग्दृष्टि की संक्रम-पतद्ग्रह विधि
अनन्तानुबंधिचतुष्क और दर्शनत्रिक का क्षय होने के बाद इक्कीस की सत्ता वाला जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि उपशमश्र णि को स्वीकार करता है, उसके नौवें गुणस्थान में अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त पुरुषवेद और संज्वलनचतुष्क रूप पांच के पतद्ग्रहस्थान में इक्कीस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं | आठवें गुणस्थान में तो उसे नौ के पतद्ग्रहस्थान में इक्कीस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं, यह समझना चाहिये । नौवें गुणस्थान में जब अन्तरकरण करे तब संज्वलन लोभ का संक्रम नहीं होने से उसके सिवाय शेष बीस प्रकृतियां पांच के पतद्ग्रहस्थान में अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त संक्रमित होती हैं, तत्पश्चात् नपुंसकवेद उपशमित हो तब उन्नीस प्रकृतियां अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त पांच प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं । उसके बाद स्त्रीवेद का उपशम हो तब अठारह प्रकृतियां उसी पांच प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त संक्रमित होती हैं ।
तत्पश्चात् पुरुषवेद की प्रथम स्थिति समय न्यून दो आवलिका शेष रहे तब वह पतद्ग्रह नहीं होता है, इसलिये उसके सिवाय शेष चार के पतद्ग्रहस्थान में अठारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं । उसके बाद छह नोकषाय का उपशम हो, तब शेष बारह प्रकृतियां चार प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में समय न्यून दो आवलिका पर्यन्त संक्रांत होती हैं । तदनन्तर पुरुषवेद का उपशम होने पर ग्यारह प्रकृतियां चार के पतदग्रहस्थान में अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त संक्रमित होती हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org