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________________ _12 पंचसंग्रह भाग ७ : परिशिष्ट १४ E प्रकृति नाम उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम स्वामित्व | जघन्य प्रदेश संक्रम स्वामित्व तीर्थकर नाम देशोन पूर्वकोटिहिक अधिक जघन्य योग से बांधे जिननाम ३३ सागर बांध. स्वबंध । की बंधावलिका के बाद के विच्छेद से आवलिका के बाद | प्रथम समय स्थिरद्विक क्षपक अपूर्वकरण स्वबंध | अनुपशांत मोह क्षपित विच्छेद के बाद कर्मांश क्षपक अपूर्वकरण प्रथम आवलिका के अन्त में यशःकीर्ति क्षपक अपूर्वकरण छठे भाग के चरम समय में स्थावर, सूक्ष्म, साधारण स्वचरम प्रक्षेप के समय साधिक १८५ सागर न बांध क्षपक नौवें गुणस्थान में । क्षपक अप्रमत्त यथाप्रवृत्त करण के अन्त में अपर्याप्त क्षपक सूक्ष्म. चरम समय में अस्थिरद्विक, अयशःकीति क्षपक यथात्रवृत्तकरण के चरम समय में दुर्भगत्रिक, नीच गोत्र युगलिक मे तीन पल्य न बांध १३२ सागर सम्यक्त्व का पालन कर क्षपक यथाप्रवृत्तकरण के अन्त में उच्च गोत्र चार बार मोह. का उपशम किये क्षपित कर्मांश क्षपक नीच गोत्र के चरम बंध के चरम समय में सूक्ष्म निगोद में अल्पकाल बांध सातवीं पृथ्वी में से निकल बिना बांधे सूक्ष्म त्रस में उद्वलना के द्विचरम स्थिति खंड के चरम समय - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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