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________________ पंचसंग्रह भाग ७ : परिशिष्ट १४ प्रकृति नाम प्रथम संस्थान, शुभ विहायोगति, सुभगत्रिक अन्तिम पांच संस्थान, संहनन अशुभ वर्णनवक, उपघात शुभ वर्णादि एकादश अशुभ विहायोगति आतप उद्योत उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम स्वामित्व जघन्य प्रदेश संक्रम स्वामित्व क्षपक अपूर्वकरण स्वबंध विच्छेद से आवलिका के बाद क्षपक सूक्ष्म. चरम समय में युगलिक में प्रथम तीन पल्य नहीं बांध, १३२ सागर 17 क्षपक अपूर्वकरण स्वबंध विच्छेद से आवलिका के बाद स्व चरम प्रक्षेप के समय क्षपक नौवें गुणस्थान में Jain Education International 11 अनुपशांत मोह क्षपित कर्माश अपूर्वकरण प्रथम आवृलिका के अल्प समय "" सम्यक्त्व का पालन कर क्षपक यथाप्रवृत्तकरण के अन्त में क्षपक सूक्ष्म. चरम समय में युगलिक में प्रथम तीन पल्य न बांध, १३२ सागर सम्यक्त्व का पालन कर क्षपक यथाप्रवृत्तकरण के अन्त में क्षपक यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय अनुपशांतमोह क्षपित कर्माश अपूर्वकरण प्रथम आवलिका के अन्त में क्षपक साधिक १८५ सागर नहीं बांधकर क्षपक अप्रमत्त यथाप्रवृत्तकरण के अन्त में साधिक १६३ सागर नहीं बांध क्षपक अप्रमत्त यथाप्रवृत्तकरण के अन्त में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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