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________________ - २१ प्र. " ४ Jain Education International २४/२८ २४/२८ ४ प्र. ! ४ ॥ २४२८ ,, For Private & Personal Use Only समयोन आवलिका । नौवां । उप.श्रेणी क्षायिक सम्यक्त्वी अप्रं. प्रत्या. | द्विक मान उपशांत होने पर , उप. सम्यक्त्वी अप्र. प्रत्या. माया उपशांत होने पर अन्तर्मुहूर्त ,,,, क्षायिक सम्यक्त्वी संज्व. मान उपशांत होने पर समयोन आवलिका , ,, द्विक क्षपक श्रेणि हास्यषट्क का क्षय होने पर अन्तर्मुहूर्त उपशम श्रेणि उप. सम्यक्त्वी संज्व. माय। । के उपशांत होने पर अन्तर्महर्त क्षपक श्रेणि पुरुषवेद का क्षय होने पर समयोन आवलिका नौवां उप. श्रेणि क्षायिक सम्यक्त्वी अप्र. प्रत्या. द्विक माया उपशांत होने पर __ अन्तर्मुहूर्त क्षपक श्रेणि संज्व. क्रोध का क्षय होने पर नौवां उप. श्रेणि उप. सम्यक्त्वी अप्र. प्रल्या. दसवां लोभ उपशांत होने पर ग्यारहवां नौवां उप. श्रेणी क्षायिक सम्यक्त्वी संज्व. माया उपशांत होने पर अन्तर्मुहूर्त ,, क्षपक श्रेणि संज्वलन मान का क्षय होने पर प्र २१ २ प्र. २ प्र. २ प्र. १ प्र. । २१ प्र. प्र. १ प्र. २ प्र. www.jainelibrary.org परिशिष्ट : ५ पंचसंग्रह भाग : ७ | ३११
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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