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________________ ( २६ ) गाथा ५८ १३५-१३७ आतप, उद्योत, औदारिकसप्तक, प्रथम संहनन, मनुष्यद्विक, आयुचतुष्क एवं शेष शुभ प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग संक्रम का स्वामित्व उत्कृष्ट अनुभाग संक्रम-स्वामित्व दर्शक प्रारूप १३७ गाथा ५६, ६० १३८-१४० जघन्य अनुभाग संक्रम स्वामित्व की सामान्य भूमिका १३८ गाथा ६१ १४०-१४१ अशुभ और शुभ प्रकृतियों के विषय में सम्यग्दृष्टि द्वारा किया जाने वाला कार्य १४० गाथा ६२ १४२-१४३ घाति एवं आयु चतुष्क प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग संक्रम का स्वामित्व १४२ गाथा ६३ १४३-१४५ अनन्तानुबंधिचतुष्क, तीर्थकरनाम और उद्वलन योग्य प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग संक्रम का स्वामित्व १४४ गाथा ६४, ६५ १४५-१४६ अनुभाग संक्रमापेक्षा मूल प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा १४५ गाथा ६६ १४६-१५१ अनुभाग संक्रमापेक्षा अनन्तानुबंधिचतुष्क, संज्वलन कषाय चतुष्क, नवनोकषाय की साद्यादि प्ररूपणा १५० गाथा ६७ १५२-१५७ शुभ ध्र वबंधिनी चौबीस एवं उद्योत, प्रथम संहनन और औदारिक सप्तक की साद्यादि प्ररूपणा १५२ मूल एवं उत्तरप्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा का प्रारूप १५५ गाथा ६८ १५८-१५६ प्रदेशसंक्रम के अर्थाधिकारों के नाम १५८ प्रदेशसंक्रम के भेद और लक्षण १५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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