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________________ २७४ पंचसंग्रह : ७ उलांघकर अन्तःकोडाकोडी में निक्षिप्त किया जाता है। इसलिये समयन्यून कंडक प्रमाण स्थिति उत्कृष्ट अतीत्थापना बताई है। __ यह उत्कृष्ट कंडक समय मात्र न्यून भी कंडक कहलाता है, जिसको इतनी स्थिति की सत्ता होती है। इसी प्रकार दो समयन्यून, तीन समय न्यून भी कंडक कहलाता है। इस प्रकार न्यून-न्यून होते-होते पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण भी कंडक कहलाता है और वह जघन्य कंडक है। पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थिति व्याघान में जघन्य अतीत्थापना है। अब अल्पबहुत्व का कथन करते हैं--- अपवर्तना में जघन्य निक्षेप सबसे अल्प है। क्योंकि वह समयाधिक आवलिका का तीसरा भाग प्रमाण है । उससे जघन्य अतीत्थापना तीन समयन्यून दुगनी है। उससे तीन समयन्यून दुगुनी होने का कारण यह है कि व्याघात रहित जघन्य अतीत्थापना समयन्यून आवलिका के दो तृतीयांश भाग प्रमाण है। जिसका संकेत पूर्व में किया जा चुका है। जिसको असत्कल्पना से इस प्रकार समझें कि आवलिका नौ समय प्रमाण है तो समयन्यून दो तृतीयांश भाग पाँच समय प्रमाण होता है, इतनी जघन्य अतीत्थापना है । जघन्य निक्षेप समयाधिक आवलिका का एक तृतीयांश भाग है और यह समयाधिक एक तृतीयांश भाग असत्कल्पना से चार समय प्रमाण होता है । उस जघन्य निक्षेप को दुगुना करके उसमें से तीन न्यून करें तो पाँच समय रहते हैं जो कि अतीत्थापना का जघन्य प्रमाण है। इसीलिये यह कहा है कि जघन्य निक्षेप से जघन्य अतीत्थापना तीन समय से न्यून दुगनी है। उससे व्याघात बिना की उत्कृष्ट अतीत्थापना विशेषाधिक है। क्योंकि वह पूर्ण एक आवलिका प्रमाण है। उससे व्याघात में उत्कृष्ट अतीत्थापना असंख्यात गुण है। क्योंकि वह उत्कृष्ट डायस्थिति प्रमाण है । उससे उत्कृष्ट निक्षेप विशेषाधिक है । क्योंकि वह www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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