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पंचसंग्रह : ७ प्रकृतियों का गुणितकर्मांश क्षपक जीव के सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान के चरम समय में (गुणसंक्रम द्वारा) उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है।
नियट्टिस्स' अर्थात् अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान में वर्तमान गुणितकर्मांश क्षपक के मध्यम आठ कषाय, स्त्याद्धित्रिक, तिर्यंचद्विक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म, साधारण
और छह नोकषाय इन चौबीस कर्मप्रकृतियों का जिस समय चरम संक्रम होता है, उस समय सर्वसंक्रम द्वारा उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। तथा
संछोभणाए दोण्हं मोहाणं वेयगस्स खणसेसे।
उप्पाइय सम्मत्तं मिच्छत्तगए तमतमाए ॥१२॥ शब्दार्थ-संछोभणाए--संक्रम, दोह-दोनों, मोहाणं-मोहनीय का, वेयगस्स-वेदक का, खणसेसे----क्षण अन्तमुहूर्त शेष हो, उप्पाइय-उत्पन्न करके, सम्मत्तं-सम्यक्त्व को, मिच्छतगए-मिथ्यात्व में जाये, तमतमाएतमस्तमा नरकपृथ्वी में ।
गाथार्थ-दोनों मोहनीय–मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय का अपने-अपने चरम संक्रम के समय उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है तथा तमस्तमा नरकपृथ्वी में अन्तर्मुहुर्त आयु शेष रहे तब सम्यक्त्व उत्पन्न करके मिथ्यात्व में जाये तब वेदक सम्यक्त्वमोहनीय का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है।
विशेषार्थ—'दोण्हं मोहाणं'-मोहद्विक अर्थात् मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय का क्षायिक सम्यक्त्व उपार्जन करते क्षपक जीव के उन दो प्रकृतियों का जिस समय चरम संछोभ-संक्रम हो उस समय सर्वसंक्रम द्वारा संक्रमित करते हुए उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय के चरमखंड की उद्वलना करते उस चरमखंड के दल को पूर्व-पूर्व समय से उत्तर-उत्तर समय में असंख्यअसंख्य गुणाकार से पर में—सम्यक्त्वमोहनीय में चरम समय पर्यन्त निक्षिप्त करता है, जिससे चरम समय में सर्वोत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम घटित हो सकता है। चरम समय में जो समस्त दल पर में संक्रमित किया
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