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________________ गुरुभक्त समाजनेता श्रीमान माणकचन्द जी सा० मेहता कवि ने कहा है जब तुम आये जगत में जग हंसा, तुम रोये। ऐसा काम कुछ कर चलो, तुम हँसमुख, जग रोये ॥ जो मनुष्य जन्म लेकर देव-गुरु की भक्ति, धर्म की प्रभावना और राष्ट्र एवं समाज की सेवा में अपनी शक्ति लगा देता है, वह संसार में युग-युग तक याद किया जाता है। उसका जीवन कृतकृत्य माना जाता है। श्रीमान माणकचन्द जी सा० बागरेचा मेहता का जीवन भी इसी प्रकार का आदर्श जीवन था । आपके पिताश्री शेषमलजी सा० और मातुश्री सायरबाई थे। जैतारण में दिनांक ६-२-१९०६ के शुभ दिन आपका जन्म हुआ। आपका व्यवसाय क्षेत्र कोप्पल रहा । जहाँ आपने महावीर जैन गोशाला, महावीर जैन प्राथमिक विद्यालय आदि की संस्थापना में पूर्ण सहयोग दिया । व्यवसाय के साथ-साथ समाज सेवा, धर्म प्रभावना, जीवदया आदि सुकृत कार्यों में भी आपने पूर्ण रुचि ली और लक्ष्मी का सुदुपयोग किया। आपकी सेवा, उदारता आदि के कारण कोपल में लोग आपको दरबार के नाम से पुकारते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgs
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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