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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४, १५
४६ से असंख्यातगुण हीन हीन है। जैसे कि औदारिकशरीर वर्गणा में जितने परमाणु हैं उससे अनन्तगुण अधिक परमाणु वैक्रियवर्गणा में हैं किन्तु औदारिक वर्गणा का जितना अवगाहन क्षेत्र है उससे असंख्यात गुण हीन क्षेत्र वैक्रिय वर्गणा का है। सारांश यह हुआ कि कार्मण वर्गणा में सबसे अधिक परमाणु हैं और अवगाहन क्षेत्र सबसे कम है। सरलता से समझने के लिए जिसका प्रारूप इस प्रकार है
कार्मण वर्गणा
मनो वर्गणा श्वासोच्छ्वास वर्गणा
भाषा वर्गणा तेजस् वर्गणा आहारक वर्गणा बक्रिय वर्गणा औदारिक वर्गणा
| कार्मण वर्गणा
मनो वर्गणा श्वासोच्छ्वासवर्गणा
भाषा वर्गणा तेजस् वर्गणा आहारक वर्गणा वकिय वर्मणा औदारिक वर्गणा
ऊपर जो अवगाहना क्षेत्र का संकेत किया है वह एक-एक वर्गणा की अपेक्षा जानना चाहिये । यदि ऐसा न हो तो औदारिकादि सभी वर्गणायें औदारिकप्रायोग्य पहली वर्गणा, औदारिक योग्य दूसरी वर्गणा इस प्रकार प्रत्येक वर्गणाएँ अनन्तानन्त हैं और संपूर्ण लोकव्यापी होकर रही हुई हैं और संपूर्ण लोकव्यापी होने से सम्पूर्ण लोक प्रमाण अवगाहना क्षेत्र हो जाता है, किन्तु अवगाहना का क्षेत्र तो अंगुल के असंख्यातवें भाग कहा है, अतः उसी से एक-एक स्कन्ध वर्गणा का अवगाहना क्षेत्र अंगुल के असंख्यातवें भाग का समझना चाहिये । किन्तु स्वजातीय अनन्त स्कन्धों का नहीं समझना चाहिये।
इस प्रकार से जीव द्वारा ग्रहणप्रायोग्य वर्गणाओं का निर्देश करने के पश्चात कार्मण वर्गणा के बाद शेष रही पौद्गलिक वर्गणाओं का निरूपण करते हैं