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________________ ४८ पंचसंग्रह : ६ - इस तरह से जीव द्वारा अग्रहण एवं ग्रहण योग्य आठ-आठ वर्गणाओं का निरूपण करने के बाद अब इन प्रत्येक वर्गणा में परमाणुओं एवम् उनके अवगाह क्षेत्र के अल्पबहुत्व का निर्देश करते हैं--- जिस क्रम से ऊपर औदारिक आदि वर्गणाओं का निरूपण किया है उस क्रम से उन वर्गणाओं में उत्तरोत्तर पुद्गल परमाणु बढ़ते जाते हैं । जो इस प्रकार जानने चाहिये औदारिकशरीर वर्गणाओं में अन्य वर्गणाओं की अपेक्षा परमाणु अल्प हैं। उनसे वैक्रियवर्गणाओं में अनन्तगुणे परमाणु हैं। उनसे आहारकवर्गणाओं में परमाणु अनन्तगुणे हैं। उनकी अपेक्षा तैजस् शरीर योग्य वर्गणाओं में अनन्तगुणे परमाणु हैं । इसी प्रकार भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कर्म योग्य वर्गणाओं में अनुक्रम से अनन्तअनन्त गुण परमाणु होते हैं। . पूर्वोक्त कथन तो द्रव्यापेक्षा है किन्तु 'विवज्जासओखित्ते' अर्थात् क्षेत्र के विषय में विपरीत क्रम समझना चाहिये, और वह इस प्रकार कार्मण वर्गणा का अवगाहन क्षेत्र सबसे अल्प है। उसकी अपेक्षा मनः प्रायोग्य वर्गणा का अवगाहन क्षेत्र असंख्यात गुणा है यानि कर्मयोग्य एक वर्गणा जितने आकाशप्रदेश को अवगाहित करके रहती है, उससे असंख्यात गुणे आकाश प्रदेश को अवगाहित करके मनःप्रायोग्य एक वर्गणा रहती है। इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिये । मनःप्रायोग्य वर्गणा से श्वासोच्छ्वास वर्गणा का अवगाहन क्षेत्र असंख्यात गुणा है। उसकी अपेक्षा अनुक्रम से भाषा, तैजस्, आहारक, वैक्रिय और औदारिक वर्गणाओं का अवगाहन क्षेत्र असंख्यात-असंख्यात गुण अधिक-अधिक है। उपर्युक्त द्रव्य परमाणुओं और अवगाहन क्षेत्र की अपेक्षा वर्गणाओं के अल्पबहुत्व कथन का सारांश यह है कि औदारिक वर्गणा से लेकर कार्मण वर्गणा पर्यन्त उत्तरोत्तर अनुक्रम से अनन्त गुणे-अनन्तगुणे अधिक-अधिक परमाणु हैं किन्तु अवगाहन क्षेत्र उत्तरोत्तर अनुक्रम से
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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