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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२ विशेषार्थ-यहाँ समस्त संसारी जीवों के जघन्य-उत्कृष्ट योगस्थानों का अनुक्रम से अल्प-बहुत्व बतलाया है कि किसकी अपेक्षा किस जीव के योगस्थान अल्प हैं या अधिक हैं। जिसकी प्ररूपणा इस प्रकार है इस संसार में सूक्ष्म और बादर तथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक एकेन्द्रियादि जीवों के जघन्य और उत्कृष्ट योगस्थान पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर असंख्यातगुण-असंख्यातगुण होते हैं । वे इस प्रकार हैं १. भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म साधारण एकेन्द्रिय जीव का जघन्य योग सबसे अल्प होता है। उससे-- २. भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । उससे ३. भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त द्वीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । उसमें-- ४. भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त त्रीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । उससे ५. भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। उससे ६. भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। उससे ७. भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। इस प्रकार से भव के प्रथम समय में वर्तमान लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त के सात जीव-भेदों के जघन्य योग का पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर क्रमशः असंख्यात गुणित रूप में अल्प-बहुत्व बतलाने के पश्चात अब यथाक्रम से शेष जीवभेदों के योग का अल्प-बहुत्व बतलाते हैं
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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