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________________ असत्कल्पना द्वारा अनुकृष्टि प्ररूपणा का स्पष्टीकरण : परिशिष्ट ११ २६५ तीन प्रकृतियों की अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थिति से नीचे के स्थितिस्थानों में भी अनुकृष्टि व्यवस्थित होने से इन तीन प्रकृतियों के परावर्तमान अशुभवर्ग की होने पर भी उसमें नहीं गिनकर पृथक् रूप से अनुकृष्टि का विचार किया जाता है । मतिज्ञानावरण आदि पचवन अपरावर्तमान अशुभ प्रकृतियों के अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंधस्थान में उत्तरवर्ती स्थितिस्थानों की अपेक्षा अल्प होने पर भी असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण रसबन्ध के अध्यवसाय होते हैं । इन अध्यवसायों में के प्रारम्भ के एक असंख्यातवें भाग प्रमाण अध्यवसायों को कम कर शेष वे सब और कम किये अध्यवसायों की संख्या से कुछ अधिक नये अध्यवसाय समयाधिक जघन्य स्थितिस्थान में होते हैं । पुनः उनके प्रारम्भ के असंख्यातवें भाग जितने अध्यवसायों को छोड़कर शेष सर्व और जो छोड़े गये हैं, उनसे कुछ विशेष संख्याप्रमाण नये अनुभागबंध अध्यवसाय दो समयाधिक जघन्य स्थितिबंधस्थान में होते हैं । इस प्रकार प्रत्येक स्थितिस्थान में रहे हुए रसबंध के अध्यवसायों में के प्रारम्भ के एक-एक असंख्यातवें भागप्रमांण अध्यवसायों को छोड़कर शेष वे सर्व और छोड़े हुए अध्यवसायों से कुछ अधिक नये-नये अध्यवसाय ऊपर-ऊपर के स्थितिस्थान में जाते हैं और ऐसा होने से सवं जघन्य स्थितिबंध के अध्यवसाय पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण अधिक स्थितिबंध तक पहुँचते हैं । जिस स्थितिबंध के अध्यवसाय जिस स्थितिस्थान तक पहुँचते हैं, उतने स्थितिस्थानों को एक कंडक कहा जाता है और वह पत्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण होता है । जिससे जघन्य स्थितिबंध के अध्यवसायों की अनुकृष्टि पल्योपम के असंख्यातवें भाग के चरम स्थिति स्थान में पूर्ण होती है । समयाधिक जघन्य स्थितिस्थान के अध्यवसायों की कंडक के ऊपर के प्रथम स्थितिस्थान में, दो समयाधिक जघन्य स्थितिस्थान के अध्यवसायों की कंडक के ऊपर के द्वितीय स्थिति स्थान में, तीन समयाधिक जघन्य स्थितिस्थान के अध्यवसायों की कंडक के ऊपर के तृतीय स्थितिस्थान में, इस तरह किसी भी विवक्षित स्थितिस्थान के अध्यवसायों की अनुकूष्टि उस
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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