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________________ २६० पंचसंग्रह : ६ इस षट्स्थानक प्ररूपणा में वर्गादि का प्रमाण इस प्रकार समझना चाहिये कंडकवर्ग ४४४ = १६ । कंडकवर्गद्वय =४X४=१६, पुनः ४४४=१६; इस प्रकार दो बार कंडकघन ४४४४ ४=६४ । कंडकघनद्वय ४४४४४=६४, पुनः ४४४४४ = ६४, इस तरह दो बार ६४। कंडकघनत्रय ४४४४४ = ६४, पुनः ४४४४४= ६४, पुनः ४४४४४ = ६४ ; इस प्रकार तीन बार ६४ । ___ कंडकाभ्यासद्वय ४ ४ ४४४४४४४=१०२४, पुनः ४४ ४ ४ ४४ ४४४=१०२४ ; इस प्रकार दो बार १०२४ । जो संख्या हो, उस संख्या को उसी संख्या से उतनी बार गुणा करने पर प्राप्त राशि को अभ्यास कहते हैं। कंडकवर्गोन-कंडकवर्ग का जो अंक हो, उसे अन्तिम संख्या में से कम कर देना। कंडक वर्ग-वर्ग-कंडक का वर्ग, उसका भी वर्ग, यथा ४४४ = १६ यह कंडकवर्ग हुआ, उसका पुनः वर्ग १६४१६=२५६ । उक्त गुणाकार से कल्पना द्वारा षट्स्थान की अंक संदृष्टि का प्रारूप स्वयमेव समझ लेना चाहिए। 00
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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