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________________ परिशिष्ट & असत्कल्पना द्वारा षट्स्थानक प्ररूपणा का स्पष्टीकरण षट्स्थानों में अनन्तभागादि भागवृद्धि और संख्येयगुणादि गुणवृद्धि आदि के कंडक जिस क्रम से होते हैं, इसका वर्णन पूर्व में नामप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा में विस्तार से किया जा चुका है । तदनुसार यहाँ भी समझ लेना चाहिए | संक्षेप में उस गुणाकार का प्रमाण इस प्रकार है १ अनन्तभाग वृद्धिस्थान २ अनन्तभाग वृद्धिस्थान से असंख्यातभाग वृद्धिस्थान कंडक प्रमाण (असत्कल्पना से ४ अंक) कंडकाधिक कंडकवर्ग प्रमाण ( २० का अंक) ३ अनन्तभाग वृद्धिस्थान से संख्यातभाग वृद्धिस्थान ४ अनन्तभाग वृद्धिस्थान से संख्यातगुणाधिक स्थान ५ अनन्तभाग वृद्धिस्थान से असंख्यातगुण वृद्धि स्थान कंडकाधिक कंडकवर्गद्वयाधिक कंडक - घन (१०० अंक ) कंडकवर्गोन, कंडकाधिक कंडकवर्गवर्गद्वय प्रमाण (५०० का अंक) कंडकाधिक, कंडकघनत्रयाधिक, कंडक - वर्गवर्गाधिक, कंडकाभ्यासद्वय प्रमाण (२५०० का अंक) कंडकवर्गत्रिकोन, कंडकाधिक, कंडकवर्ग-वर्गाधिक कंडकघन, वर्गत्रय प्रमाण (१२५०० का अंक) स्थापना में सर्वं अंकों का प्रमाण - ४ +२०+१००+५०० + २५०० +१२५०० = १५६२४ । ६ अनन्तभाग वृद्धिस्थान से अनन्तगुण वृद्धिस्थान
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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