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________________ पंचसंग्रह : ६ २७० द्वितीय स्पर्धक ७३ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले ७३ करोड़ २ ७३ करोड़ ३ , ७३ करोड ४ ४७० ४८० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा द्वितीय वर्गणा ४६० " तृतीय वर्गणा . चतुर्थ वर्गणा ४५० १८६० इस प्रकार द्वितीय स्पर्धक में १८६० आत्म-प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । तृतीय स्पर्धक ७४ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले ४४० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा ७४ करोड़ २ , ४३० द्वितीय वर्गणा ७४ करोड ३ , ४२० तृतीय वर्गणा ७४ करोड ४ ४१० चतुर्थ वर्गणा १७०० इस प्रकार तृतीय स्पर्धक में १७०० आत्म-प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । चतुर्थ स्पर्धक ७५ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले ४०० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा ७५ करोड़ २ , ३६० , द्वितीय वर्गणा ७५ करोड़ ३ , , तृतीय वर्गणा ७५ करोड ४ . ३७० ..., . चतुर्थ वर्गणा ३८० १५४० इस प्रकार चतुर्थ स्पर्धक में १५४० आत्म-प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । पांचवां स्पर्धक ७६ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले ३६० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा ७६ करोड़ २ , ३५० , द्वितीय वर्गणा
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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