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________________ २.६६ पंचसंग्रह : ६ इस प्रकार द्वितीय स्पर्धक में २२८० आत्म-प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । तृतीय स्पर्धक ५१० ३ करोड १. वीर्याविभाग वाले ३ करोड़ २ . ३ करोड़ ३ ॥ ३ करोड़ ४ ." ५२० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा द्वितीय वर्गणा तृतीय वर्गणा ४६० चतुर्थ वर्गणा ५०० २०२० इस प्रकार तृतीय स्पर्धक में २०२० आत्म-प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । चतुर्थ स्पर्धक ४ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले ४८० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा ४ करोड़ २ , ४७० द्वितीय वर्गणा ४ करोड़ ३ , तृतीय वर्गणा ४ करोड़ ४ , चतुर्थ वर्गणा ४६० ४५० १८६० . इस प्रकार चतुर्थ स्पर्धक में १८६० आत्म-प्रदेशों की चार वर्गणाएँ । पांचवाँ स्पर्धक ५ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले ४४० आत्म-प्रदेशों की प्रथम वर्गणा ५ करोड़ २ द्वितीय वर्गणा ५ करोड़ ३ , ४२० तृतीय वर्गणा ५ करोड ४ , ४१० चतुर्थ वर्गणा . १७०० इस प्रकार पांचवें स्पर्धक में १७०० आत्म-प्रदेशों की चार वर्गणाएँ ।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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