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बंधनकरण प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०१, १०२
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कोडी के अन्तर्गत है और नहीं भी है । इसका कारण यह है कि आठवें गुणस्थान तक का बंध अंत: कोडाकोडी के अंतर्गत है और नौवें गुणस्थान के पहले ही समय में एक करोड़ सागरोपम प्रमाण बंध होने से वह बंध अंतःकोडाकोडी के अन्तर्गत नहीं है ।
सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानवर्ती संयत के अत्यन्त अल्पकषायजन्य बारह मुहूर्त, आठ मुहूर्त या अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिबंध होने से उसे सबसे अल्प बंध बतलाया है ।
इस प्रकार से स्थितिबंध के अल्प - बहुत्व की प्ररूपणा जानना चाहिये । सुगमता से बोध कराने के लिये उक्त कथन का दर्शक प्रारूप पृष्ठ २१४-२१५ पर देखिये ।
निषेक प्ररूपणा तथा अबाधा कंडक प्ररूपणा क्रमशः पांचवें बंधविधिद्वार की ' मोत्तुमवाहा समया' गाथा ५० द्वारा तथा 'उक्को - सगठिइ बंधा .... गाथा ५३ द्वारा की जा चुकी है । अतः वहां से देख लेना चाहिये | अब अल्प - बहुत्व प्ररूपणा करते हैं ।
अल्प - बहुत्व प्ररूपणा
थोवा
एगं पएसविवरं
जहन्नबाहा उक्कोसाबाहठाणकंडाणि । उक्कोसिया अबाहा नाणापएसंतरा तत्तो ॥ १०१ ॥ अबाहाकंडगस्स ठाणाणि । होणfos ठिइट्ठाणा उक्कोसट्टिइ तओ अहिया ॥ १०२ ॥ शब्दार्थ - थोवा - स्तोक, अल्प, जहन्नबाहा - जघन्य अबाधा, उक्कोसाबाहठाणकंडाणि - उत्कृष्ट अबाधास्थान, कंडकस्थान, उक्कोसिया — उत्कृष्ट, अबाहा – अबाधा, नाणापएसंतरा - नाना प्रदेशान्तर, तत्तो – उससे; एवं पएसविवरं - एक प्रदेश का अंतर, अबाहाकंडगस्स – अबाधा कंडक के, ठाणाणिस्थान, हीणठिइ — जघन्यस्थिति, ठिट्ठाणा — स्थितिस्थान, उक्कोसट्ठिइउत्कृष्टस्थिति, तओ — उससे, अहिया - अधिक ।
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गाथार्थ - जघन्य अबाधा सबसे अल्प है, उससे उत्कृष्ट अबाधास्थान, कंडकस्थान, उत्कृष्ट अबाधा नाना प्रदेशान्तर, एक