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________________ बंधनकरण प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०१, १०२ २१३ कोडी के अन्तर्गत है और नहीं भी है । इसका कारण यह है कि आठवें गुणस्थान तक का बंध अंत: कोडाकोडी के अंतर्गत है और नौवें गुणस्थान के पहले ही समय में एक करोड़ सागरोपम प्रमाण बंध होने से वह बंध अंतःकोडाकोडी के अन्तर्गत नहीं है । सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानवर्ती संयत के अत्यन्त अल्पकषायजन्य बारह मुहूर्त, आठ मुहूर्त या अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिबंध होने से उसे सबसे अल्प बंध बतलाया है । इस प्रकार से स्थितिबंध के अल्प - बहुत्व की प्ररूपणा जानना चाहिये । सुगमता से बोध कराने के लिये उक्त कथन का दर्शक प्रारूप पृष्ठ २१४-२१५ पर देखिये । निषेक प्ररूपणा तथा अबाधा कंडक प्ररूपणा क्रमशः पांचवें बंधविधिद्वार की ' मोत्तुमवाहा समया' गाथा ५० द्वारा तथा 'उक्को - सगठिइ बंधा .... गाथा ५३ द्वारा की जा चुकी है । अतः वहां से देख लेना चाहिये | अब अल्प - बहुत्व प्ररूपणा करते हैं । अल्प - बहुत्व प्ररूपणा थोवा एगं पएसविवरं जहन्नबाहा उक्कोसाबाहठाणकंडाणि । उक्कोसिया अबाहा नाणापएसंतरा तत्तो ॥ १०१ ॥ अबाहाकंडगस्स ठाणाणि । होणfos ठिइट्ठाणा उक्कोसट्टिइ तओ अहिया ॥ १०२ ॥ शब्दार्थ - थोवा - स्तोक, अल्प, जहन्नबाहा - जघन्य अबाधा, उक्कोसाबाहठाणकंडाणि - उत्कृष्ट अबाधास्थान, कंडकस्थान, उक्कोसिया — उत्कृष्ट, अबाहा – अबाधा, नाणापएसंतरा - नाना प्रदेशान्तर, तत्तो – उससे; एवं पएसविवरं - एक प्रदेश का अंतर, अबाहाकंडगस्स – अबाधा कंडक के, ठाणाणिस्थान, हीणठिइ — जघन्यस्थिति, ठिट्ठाणा — स्थितिस्थान, उक्कोसट्ठिइउत्कृष्टस्थिति, तओ — उससे, अहिया - अधिक । -- गाथार्थ - जघन्य अबाधा सबसे अल्प है, उससे उत्कृष्ट अबाधास्थान, कंडकस्थान, उत्कृष्ट अबाधा नाना प्रदेशान्तर, एक
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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