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________________ पंचसंग्रह : ६ उससे पर्याप्त चतुरिन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे पर्याप्त चतुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है । २१२ उससे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुण है, उससे अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषधिक है, उससे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है । उससे छठे गुणस्थान में संक्लिष्ट परिणामों से उत्कृष्ट स्थिति बांधने वाले साधु का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुण है, उससे देशविरतिगुणस्थान वाले का जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुण है, उससे उसी का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुण है, उससे चतुर्थ गुणस्थान वाले पर्याप्तकों का जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुण, उनसे उन्हीं के अपर्याप्तकों का जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुण, उनसे उन्हीं के अपर्याप्तकों का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुण, उनसे उन्हीं के पर्याप्तकों का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुण है । उनसे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों का जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुण, उनसे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकों का जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुण और उनसे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकों का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुण है । अपर्याप्त संज्ञी के उत्कृष्ट स्थितिबंध से पर्याप्त संज्ञी का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुण है और वह बीस तीस या सत्तर आदि कोडाकोडी सागरोपम रूप समझना चाहिये । , संयत के उत्कृष्ट स्थितिबंध से लेकर अपर्याप्त संज्ञी के उत्कृष्ट स्थितिबंध तक के समस्त स्थितिबंध अन्तःकोडाकोडी के अन्तर्गत ही हैं और संयत के उत्कृष्ट स्थितिबंध से न्यून स्थितिबंध अन्तः त: कोडा
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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