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________________ २०६ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६५,६६,६७,६८ सागरोपम के अंतिम स्थितिस्थान से लेकर एक कंडक प्रमाण स्थानों में उत्कृष्ट रस अनुक्रम से अनन्तगुण कहना चाहिये । उससे नीचे जिस स्थितिस्थान में जघन्य रस कहा है, उससे नीचे के स्थितिस्थान में जघन्य रस अनन्तगुण; इस प्रकार अनुक्रम से एक कंडक प्रमाण स्थतिस्थानों में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण और एक स्थितिस्थान में जघन्यरस अनन्तगुण कहते हुए वहाँ तक जाना चाहिये यावत् ऊपर के स्थावरनामकर्म के साथ परावर्तनभाव से बंधते अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध तक के उत्कृष्ट रस के विषयभूत समस्त स्थितिस्थान पूर्ण हों और नीचे जघन्य रस के विषयभूत एक-एक कंडक प्रमाण स्थितिस्थान पूर्ण हों। तत्पश्चात् अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिस्थान से कंडक प्रमाण स्थान के नीचे के दूसरे कंडक के पहले स्थितिस्थान में जघन्य अनन्तगुण रस, उससे अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के नीचे के पहले स्थितिस्थान में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण, उससे दूसरे कंडक के दूसरे स्थितिस्थान में जघन्य रस अनन्तगुण, उससे अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के नीचे के दूसरे स्थितिस्थान में उत्कृष्ट रसबंध अनन्तगुण कहना चाहिये । इस प्रकार अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के नीचे-नीचे के एक-एक स्थान में उत्कृष्ट रस और अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थिति के नीचे के कंडक प्रमाण स्थानों के नीचे-नीचे के एक-एक स्थितिस्थान में अनुक्रम से जघन्य रसबंध अनन्तगुण वहाँ तक कहना चाहिये, यावत् त्रसनामकर्म का जघन्य स्थितिबंध हो। अंतिम कंडक प्रमाण स्थितिस्थानों में उत्कृष्ट रस अभी अनुक्त है, वह भी अनुक्रम से अनन्तगुण कहना चाहिये । ___इसी प्रकार बादर, पर्याप्त और प्रत्येक नामकर्म की तीव्रमंदता भी समझना चाहिये । १ सरलता से इनकी तीव्रमंदता समझने के लिये प्रारूप और स्पष्टीकरण परिशिष्ट में देखिये।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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