SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ पंचसंग्रह : ६ स्थितियों में उत्कृष्ट अनुभाग अनुक्त है, शेष समस्त स्थानों में जघन्य और उत्कृष्ट अनुभाग कहा जा चुका है । शेष रहे एक कंडक प्रमाण स्थितियों में उत्कृष्ट रस बाद में कहा जायेगा। - उन्नीसवीं कोडाकोडी सागरोपम की पहली स्थिति से अठारहवीं कोडाकोडी की अंतिम उत्कृष्ट स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, उससे समयन्यून स्थिति में जघन्य अनुभाग उतना ही, उससे दो समय न्यून स्थिति में जघन्य अनुभाग उतना ही, इस प्रकार नीचे-नीचे के स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग उतना ही वहां तक कहना चाहिये यावत् अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध प्राप्त हो। जितने स्थितिस्थान स्थावरनामकर्म के साथ परावर्तमान भाव से बंधते हैं, उनमें का उत्कृष्ट स्थिति से नीचे उतरते अंतिम स्थान आता है। उससे नीचे की पहली स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, उससे उसकी नीचे की स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, इस प्रकार जघन्य अनुभाग अनन्तगुण वहाँ तक कहना चाहिये, यावत् कंडक के संख्यात भाग प्रमाण स्थितिस्थान जायें और एक भाग शेष रहे। उससे अठारह कोडाकोडी से ऊपर के उन्नीसवीं कोडाकोडी के अन्तिम कंडक प्रमाण जिन स्थानों में उत्कृष्ट रस अनुक्त है, उनमें अनुक्रम से अनन्तगुण रस कहना चाहिये । यानि अठारहवीं कोडाकोडी से ऊपर के कंडक प्रमाण स्थितिस्थानों में के अंतिम स्थितिस्थान में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण, उससे द्विचरमस्थिति में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण, इस तरह पीछे-पीछे के स्थितिस्थान में उत्कृष्ट अनन्तगुण रस वहाँ तक कहना चाहिये, यावत् कंडक प्रमाण स्थान पूर्ण हो । अनाक्रांत एक कंडक प्रमाण स्थानों में जो उत्कृष्ट रस अनुक्त था, वह कह दिया गया है। उससे अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के नीचे के कंडक के संख्यातभाग प्रमाण जिन स्थानों में जघन्य रस कहा था, उससे नीचे के स्थान में जघन्य रस अनन्तगुण, उससे अठारहवीं कोडाकोडी
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy