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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७९ १७१ वि-भी, आउगाण-आयुओं की, थोवाणि-स्तोक अल्प, ठाणाणि-स्थान, उत्तरासु-उत्तर-उत्तर में, असंखगुणणाए-असंख्यातगुण, सेढीएश्रेणि से। गाथार्थ-सभी आयुओं की सर्व जघन्य स्थिति में अल्प स्थान हैं और उत्तर-उत्तर स्थानों में असंख्यात गुणश्रेणि से होते हैं। विशेषार्थ-गाथा में आयु के स्थितिस्थानों में रसबंधाध्यवसायों का निर्देश करते हुए बताया है कि 'सव्वाण वि आउगाण' अर्थात् सभी चारों आयु के 'सव्वजहन्नठिईए' जघन्य स्थितिस्थान में रसबंधाध्यवसाय थोवाणि-अल्प हैं। लेकिन वे भी असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण तो हैं ही। इसके पश्चात् समयाधिक स्थितिस्थान में असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार उत्तर-उत्तर के स्थितिस्थान में पूर्व-पूर्व से असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे स्थान वहाँ तक कहना चाहिये यावत् उत्कृष्ट स्थितिस्थान प्राप्त हो । इस प्रकार से आयु कर्म के स्थितिस्थानों में रसबंधाध्यवसायस्थानों का स्वरूप जानना चाहिये। अब इन रसबंधाध्यवसायस्थानों की तीव्रता-मंदता का स्पष्ट ज्ञान करने के लिये रसबंध में हेतुभूत अध्यवसायों की अनुकृष्टि का विचार किस स्थितिस्थान से प्रारम्भ किया जाता है, इसको स्पष्ट करते हैं। अनुकृष्टि प्रारम्भ होने का स्थान गंठीदेसे सन्नी अभव्वजीवस्स जो ठिईबंधो। ठिइवुड्ढीए तस्स उ बंधा अणुकड्ढिओ तत्तो ॥७॥ शब्दार्थ-गंठीदेसे-ग्रन्थिदेशस्थान में, सन्नी-संज्ञी, अभव्वजीवस्स -अभव्य जीव के, जो-जो, ठिईबंधो-स्थिति बंध, ठिइवुड्ढीए-स्थिति की वृद्धि में, तस्स-उसकी, उ-और, अनुक्त की, बंधा-बंध से, अणुकड्ढिनो-अनुकृष्टि, तत्तो-वहाँ से ।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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