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________________ बंधनकरण - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६८, ६६ शब्दार्थ - जबमज्झे - यवमध्य के, ठाणाई - स्थान, असंखभागो - असं - ख्यातवें भाग, उ — और, सेसठाणाणं - शेष स्थानों के, हेट्ठमि — नीचे के, होति — होते हैं, थोवा - स्तोक अल्प, उवरिम्मि - ऊपर के असंखगुणिया णि - , असंख्यातगुणं । १५७ गाथार्थ - यवमध्य के स्थान शेष स्थानों के असंख्यातवें भाग हैं तथा नीचे के स्थान अल्प और ऊपर के स्थान असंख्यात - गुणे हैं । विशेषार्थ - - गाथा में यवमध्य रूप अनुभाग स्थानों का प्रमाण बतलाया है कि वे कितने हैं । आठ समय वाले स्थानों को यवमध्य कहते हैं । अतएव यव के मध्य सदृश होने से वे यवमध्य रूप आठ समय वाले स्थान अन्य स्थानों की अपेक्षा असंख्यातवें भाग मात्र होते हैं - 'असंखभागो उसेस ठाणाणं' । किन्तु यवमध्य से नीचे के चार से सात समय तक के काल वाले स्थान अल्प हैं— 'हेट्ठमि होंति थोवा' और उनकी अपेक्षा यवमध्य से ऊपर के सात से लेकर दो समय तक के काल वाले स्थान असंख्यातगुणे हैं - 'उवरिम्मि असंखगुणियाणि' । इस प्रकार से यवमध्य प्ररूपणा का आशय जानना चाहिये | अब स्पर्शना और अल्पबहुत्व प्ररूपणा करते हैं । स्पर्शना और अल्पबहुत्व प्ररूपणा दुगचउरट्ठतिसमइग सेसा य असंखगुणणया कमसो । काले ईए पुट्ठा जिएण ठाणा भमतेणं ॥ ६८ ॥ तत्तो विसेसअहियं जवमज्झा उवरिमाइं ठाणाइं । तत्तो कंडगट्ठा तत्तोवि हु सव्वठाणाई ॥६६॥ शब्दार्थ - बुगचउर ट्ठतिसमद्ग—– दो, चार, आठ, तीन समय काल वाले, सेसा - शेष, य और असंखगुणणया असंख्यातगुणे से, कमसो
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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