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________________ ७८ पंचसंग्रह : ६ गाथार्थ-संपूर्ण जीव राशि से अनन्त गुणे स्नेह से युक्त जो पुद्गल परमाणु हैं, उनका समूह प्रथम वर्गणा है और वह बंधननामकर्म के योग्य होती है। एक-एक अविभाग से बढ़ती हुई वर्गणायें सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण होती हैं। विशेषार्थ-संपूर्ण जीवराशि से अनन्त गुणे स्नेह से युक्त पुद्गल परमाणुओं का जो समुदाय, वह पहली जघन्य वर्गणा है। ऐसी वर्गणायें अर्थात् समस्त जीव राशि से अनन्त गुणे स्नेहाविभाग से युक्त परमाण वाली वर्गणायें औदारिक-औदारिकादि बंधननामकर्म योग्य होती हैं और उन वर्गणाओं को ग्रहण करके जीव बंधननामकर्म के उदय से अपने साथ संबद्ध करता है। लेकिन इनसे अल्प स्नेहाणु वाली वर्गणाओं को अपने साथ संबद्ध नहीं करता है। ___ तत्पश्चात् एक अधिक स्नेहाणु वाले पुद्गल परमाणुओं के समूह की दूसरी वर्गणा, दो अधिक स्नेहाणु वाले परमाणुओं की तीसरी वर्गणा, इस प्रकार एक-एक स्नेहाणु से बढ़ती हुई वर्गणायें निरन्तर वहाँ तक जानना चाहिये, यावत् अभव्यों से अनन्तगुण या सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण हों । अर्थात् एक-एक स्नेहाणु से बढ़ती हुई वे वर्गणायें अभव्यों से अनन्तगण अथवा सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण होती हैं। __ इस प्रकार से वर्गणा प्ररूपणा का स्वरूप जानना चाहिये । अब स्पर्धक और अन्तर प्ररूपणा का कथन करते हैं। स्पर्धक और अन्तर प्ररूपणा । ताओ फड्डगमेगं अणंतविवराइं इय भूय ॥२८॥ जइम इच्छसि फड्डं तत्तिय संखाए वग्गणा पढमा। गुणिया तस्साइल्ला रूवुत्तरियाओ अण्णाओ ॥२६॥ शब्दार्थ-ताओ—उनका, फड्डगमेगं—एक स्पर्धक होता है, अणंतविवराई-अनन्त अन्तराल, इय—इस प्रकार, भूय-बार-बार, जइम-जितनेबें, इच्छसि-इच्छा करते हो, फड्डं-स्पर्धक की, तत्तिय--उस, संखाएसंख्या के साथ, वग्गणा-वर्गणा, पढमा—पहली, गुणिया--गुणा करने से,
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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