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________________ पंचसंग्रह : ५ पर प्राप्त लब्ध ३/७ सागर में से पल्य के असंख्यातवें भाग को कम कर देने पर निद्रापंचक और असातावेदनीय की जघन्य स्थिति होती है । इसी प्रकार से दर्शनमोहनीयवर्ग, कषायमोहनीयवर्ग, नोकषायमोहनीयवर्ग, गोगवर्ग तथा वैक्रियषट्क, आहारकद्विक, तीर्थकर और यशःकीर्ति को छोड़कर शेष नामवर्ग की सत्तावन प्रकृतियों की जघन्य स्थिति का प्रमाण जान लेना चाहिए और उसमें कम किया पल्य का असंख्यातवां भाग मिलाने पर उत्कृष्ट स्थितिबंध का प्रमाण हो जाता है । ५० सारांश यह हुआ कि अपने-अपने वर्ग की उत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने पर प्राप्त लब्ध तो एकेन्द्रिय की अपेक्षा तत्तत् कर्म प्रकृति की उत्कृष्ट स्थिति है और उसमें से पल्य का असंख्यातवां भाग कम करने पर प्राप्त प्रमाण जघन्य स्थिति है । पंचसंग्रह में निद्रा आदि पचासी कर्मप्रकृतियों की जघन्य स्थिति के सम्बन्ध में पहले उल्लेख किया जा चुका है कि निद्रा आदि प्रकृतियों की अपनी जितनी उत्कृष्ट स्थिति हो उसे सत्तर कोडाकोडी सागर से भाग देने पर जो आये उतनी उनकी जघन्य स्थिति है और उसमें पल्योपम का असंख्यातवां भाग बोड़ने पर जो आये उतनी उनकी उत्कृष्ट स्थिति है । यद्यपि शुक्ल वर्णादि को अपनी उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी आदि है, अतः उसे मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने पर १/७ भाग आता है, लेकिन जघन्य स्थिति के विचार में तो शुक्लवर्ण, सुरभिगंध, मधुररस और चार शुभ स्पर्श इन सात के सिवाय शेष हारिद्रवर्ण आदि तेरह प्रकृतियों की २ / ७ भाग जघन्य • स्थिति कही है तथा ३ / ७ आदि जो एकेन्द्रिय की जघन्य स्थिति है, उसे पचीस, पचास, सौ और हजार गुणी करने पर जो आये उतनी अनुक्रम से द्वीन्द्रियादि जघन्य स्थिति बांधते हैं और पत्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक ३ / ७ भाग आदि जो उत्कृष्ट स्थिति है, उसे पच्चीस आदि से गुणा करने पर प्राप्त प्रमाण द्धीन्द्रियादि उत्कृष्ट स्थिति बांधते हैं । इस सन्दर्भ में पांचवें कर्मग्रन्थ गाथा ३६ की टीक में कहा है कि अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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