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________________ पंचसंग्रह भाग ५ : परिशिष्ट ७ ४५ साहित्य में बताया है लेकिन देव, नारक और भोगभूमिज मनुष्यों, तिर्यंचों की छह मास प्रमाण अबाधा को लेकर मौलिक भेद है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है ... दिगम्बर साहित्य के मतानुसार निरुपक्रमायुष्क अर्थात् अनपर्वार्तत आयुष्क देव नारक अपनी भुज्यमान आयु छह मास शेष रहने पर परभव सम्बन्धी आयुबंध के योग्य होते हैं किन्तु छह मास में परभव की आयु का बंध नहीं होता है, उसके त्रिभाग में आयुबंध होता है और यदि उस विभाग में भी आयु का बंध न हो तो छह मास के नौवें भाग में आयुबंध होता है । इसका सारांश यह हुआ कि जैसे कर्मभूमिज मनुष्य, तिर्यंच अपनी-अपनी भुज्यमान पूरी आयु के त्रिभाग में परभव की आयु बांधते हैं और आठ अपकर्ष हो सकते है, वैसे ही देव नारक और भोग भूमिज भी छह मास के त्रिभाग में आयु बांधते हैं और आठ अपकर्ष इनके लिये भी सम्भव हैं । ' दिगम्बर परम्परा में यही एक मत सामान्यतः स्वीकृत है । केवल भोगभूमिजों को लेकर मतभेद है । किन्हीं का मत है कि उनमें नौ मास आयु शेष रहने पर उसके त्रिभाग में परभव की आयु बांधते हैं ।" इसके अतिरिक्त एक मतभेद और भी है । यदि आठों त्रिभागों में आयु बंध न हो तो अनुभूयमान आयु का एक अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहने पर परभव की आयु नियम से बंध जाती है, यह सामान्य नियम है, लेकिन किन्ही के मत से अनुभूयमान आयु का १ निरुपक्रमायुष्काः अनपवर्तितायुष्काः देवनारकाः भुज्यमानायुषिषड्मासावंशेषे परभवायुबन्धप्रायोग्या भवन्ति । अत्राप्यष्टापकर्षाः स्युः । समयाधिक पूर्वकोटिप्रभृति त्रिपलितोपम पर्यन्तं संख्याता संख्यातवर्षायुष्क भोगभूमितिर्यग् मनुष्याऽपि निरुपक्रमायुष्का इति ग्राह्यं । - गो. जीवकाण्ड गा. ५१८ टीका २ देवनारकाणां स्वस्थितौ षटमासेषु भोगभूमिजानां नवमासेषु च अवशिष्टेषु त्रिभागेन आयुर्बन्ध संभवात् । Jain Education International - गो. कर्मकाण्ड गा. १५८ की संस्कृत टीका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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