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________________ ૪ पंचसंग्रह : ५ वाली संज्ञाओं के नाम इस प्रकार हैं- --अववांग, अवव, हुहुअंग, हुहु, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिपूरांग, अर्थनिपूर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्ष प्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका | शीर्ष प्रहेलिका पर्यन्त गुणा करने पर १६४ अंक प्रमाण संख्या होती है, यथा - ७५८, २६३, २५३, ०७३, ०१०, २४१, १५७, ६७३, ५६६, ६७५, ६ε६, ४०६, २१८, ६६६, ८४८, ०८०, १८३, २६६, इन ५४ अंकों पर एक सौ चालीस (१४०) विन्दियां लगाने से शीर्ष प्रहेलिका संख्या का प्रमाण आता है । यहाँ तक ही गणनीय काल की अवधि मर्यादा है । तत्पश्चात् आगे के काल की गणना करने के लिए उपमा का आधार लिया जाता है । जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है । ज्योतिष्करण्डक के अनुसार पूर्वांग आदि संज्ञाओं का क्रम इस प्रकार है८४ लाख पूर्व का एक लतांग, ८४ लाख लतांग का एक लता, ८४ लाख लता का एक महालतांग, ८४ लाख महालतांग का एक महालता, इसी प्रकार आगे नलिनांग, नलिन, महानलिनांग, महानलिन, पद्मांग, पद्म, महापद्मांग, महापद्म, कमलांग, कमल, महाकमलांग, महाकमल, कुमुदांग, कुमुद, महाकुमुदांग, महाकुमुद, त्रुटितांग, त्रुटित, महात्रुटितांग, महात्रुटित, अडडांग, अडड, महाअडडांग, महाअडड, ऊहांग, ऊह, महाऊहांग, महाऊह, शीर्ष प्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका । भगवतीसूत्र में संज्ञाओं का क्रम और नाम इस प्रकार हैं ८४ लाख वर्षों का एक पूर्वांग होता है । इसी प्रकार आगे-आगे क्रमशः पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहू कांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनुपूरांग, अर्थनुपूर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुयत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्ष - प्रहेलिकांग, शीर्ष प्रहेलिका । तत्त्वार्थ राजवार्तिक में संज्ञाओं का क्रम व नाम यह हैं पूर्वांग, पूर्व, नयुतांग, नयुत, कुमुदांग, कुमुद, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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